Wednesday, August 16, 2017

कश्मीरियों को गले लगाने वाली बात में कोई पेच है क्या?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वतंत्रता दिवस संबोधन की दो-तीन खास बातों पर गौर करें तो पाएंगे कि वे 2019 के चुनाव से आगे की बातें कर रहे हैं. यह राजनीतिक भाषण है, जो सपनों को जगाता है. इन सपनों की रूपरेखा 2014 के स्वतंत्रता दिवस संबोधन में और जून 2014 में सोलहवीं संसद के पहले सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण में पेश की गई थी.

मोदी ने 2014 में अपने जिन कार्यक्रमों की घोषणा की थी, अब उन्होंने उनसे जुड़ी उपलब्धियों को गिनाना शुरू किया है. वे इन उपलब्धियों को सन 2022 से जोड़ रहे हैं. इसके लिए उन्होंने सन 1942 की अगस्त क्रांति से 15 अगस्त 1947 तक स्वतंत्रता-संकल्प को रूपक की तरह इस्तेमाल किया है. 

हालांकि मोदी के संबोधन में ध्यान देने लायक बातें कुछ और भी हैं, पर लोगों का ध्यान जम्मू-कश्मीर को लेकर कही गई कुछ बातों पर खासतौर से गया है.

कश्मीरी लोग हमारे हैं, बशर्ते...

सत्तर साल का आजाद भारत: कितने कदम चले हम?

करीब डेढ़ दशक पहले कहावत प्रसिद्ध हुई थी, ‘सौ में नब्बे बेईमान, फिर भी मेरा भारत महान।’ यह बात ट्रकों के पीछे लिखी नजर आती थी। यह एक प्रकार का सामाजिक अंतर्मंथन था। कि हम अपना मजाक उड़ाना भी जानते हैं। यह एक सचाई की स्वीकृति भी थी।  
घटनाओं को एकसाथ मिलाकर पढ़ें तो विचित्र बड़े रोचक अनुभव होते हैं। हाल में उपराष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनाव में 771 वोट पड़े। इनमें से 11 वोट अवैध घोषित हुए। उपराष्ट्रपति के चुनाव में संसद के दोनों सदनों के सदस्य वोट डालते हैं। वोट डालने में यह गलती सांसदों ने की है। इसे बड़ी गलती न मानें, पर यह बात किस तरफ इशारा करती है? यही कि हमारे लोकतंत्र ने संस्थाओं की रचना तो की, पर उनकी गुणवत्ता को सुनिश्चित नहीं किया।

Tuesday, August 15, 2017

स्मृतियों की नींव पर नए भारत का सपना

पाश की कविता है, सबसे ख़तरनाक होता है/ हमारे सपनों का मर जाना। सपने तमाम तरह के होते हैं। भरमाने वाले, उकसाने वाले और परेशान करने वाले। वे टूटते भी हैं। पर सपनों को होना चहिए। ऐसे सपने जो हम सब मिलकर देखें।
अगस्त का यह महीना कुछ जबर्दस्त यादें साथ लेकर आता है। स्वतंत्रता दिवस हमारे लिए महत्त्वपूर्ण याद है। पर यह हिरोशिमा और नगासाकी की तबाही का महीना भी है। 6 अगस्त 1945 को जापान के हिरोशिमा शहर पर एटम बम गिराया गया। फिर भी जापान ने हार नहीं मानी तो 9 अगस्त को नगासाकी शहर पर बम गिराया गया। इन दो बमों ने विश्व युद्ध रोक दिया। दुनिया में इसके पहले इतने सारे लोगों की एकसाथ मौत पहले कभी नहीं हुई थी। मीठी हों या खौफनाक, यादें को भुलाई नहीं जातीं।
उस बमबारी को बहत्तर साल हो गए हैं। हमारी आजादी से दो साल ज्यादा। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से जापानी संविधान के अनुच्छेद 9 के तहत व्यवस्था कर दी गई थी कि जापान भविष्य में युद्ध नहीं करेगा। पर अब जापान फिर से इन कानूनों में बुनियादी बदलाव कर रहा है। वजह है कि वैश्विक राजनीति बदल रही है, शक्ति संतुलन बदल रहा है। जापान को इस बात का श्रेय जाता है कि उसने द्वितीय विश्व युद्ध की पराजय और विध्वंस का सामना करते हुए पिछले बहत्तर साल में एक नए देश की रचना कर दी। वह आज भी दुनिया की तीसरे नम्बर की अर्थव्यवस्था है। भले ही चीन उससे बड़ी अर्थव्यवस्था है, पर तकनीकी गुणवत्ता में चीन अभी उसके करीब नहीं हैं। हमारे पास जापान से सीखने को बहुत कुछ है।

Sunday, August 13, 2017

बीजेपी की अगस्त क्रांति

पिछले तीन साल में नरेंद्र मोदी सरकार न केवल कांग्रेस के सामाजिक आधार को ध्वस्त किया है, बल्कि उसके लोकप्रिय मुहावरों को भी छीन लिया है। गांधी और पटेल को वह पहले ही अंगीकार कर चुकी है। मोदी के स्वच्छ भारत अभियान का प्रतीक चिह्न गांधी का गोल चश्मा है। गांधी के सत्याग्रह के तर्ज पर मोदी ने स्वच्छाग्रह शब्द का इस्तेमाल किया। सरदार वल्लभ भाई पटेल को वे पहले ही अपना चुके हैं। इस साल 9 अगस्त क्रांति दिवस संकल्प दिवस के रूप में मनाने का आह्वान करके मोदी ने कांग्रेस की एक और पहल को छीन लिया।
अगस्त क्रांति के 75 साल पूरे होने पर बीजेपी सरकार ने जिस स्तर का आयोजन किया, उसकी उम्मीद कांग्रेस पार्टी ने नहीं की होगी। मोदी ने 1942 से 1947 को ही नहीं जोड़ा है, 2017 से 2022 को भी जोड़ दिया है। यानी मोदी सरकार की योजनाएं 2019 के आगे जा रही हैं। भारत छोड़ो आंदोलन की याद में संसद में आयोजित विशेष बैठक में मोदी ने जिन रूपकों का इस्तेमाल किया, उनसे उन्होंने सामान्य जन-भावना को जीतने की कोशिश की। दूसरी ओर सोनिया गांधी ने उस आंदोलन को कांग्रेस पार्टी के आंदोलन के रूप में ही रेखांकित करने की कोशिश की। साथ ही उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर भी वार किया। इससे उन्हें वांछित लाभ मिला या नहीं, कहना मुश्किल है। बेहतर होता कि वे ऐसे मौके को राष्ट्रीय पर्व तक सीमित रहने देतीं।

Wednesday, August 9, 2017

ताजा करें अगस्त क्रांति की याद

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ताजा 'मन की बात' में भारत छोड़ो आंदोलन का उल्लेख करते हुए कहा है कि देश की जनता को अस्वच्छता, गरीबी, आतंकवाद, जातिवाद और संप्रदायवाद को खत्म करने की शपथ लेनी चाहिए. यह बड़े मौके की बात है. उस आंदोलन को हम आज के हालात से जोड़ सकते हैं. हालांकि वह आंदोलन संगठित तरीके से नहीं चला, पर सन 1857 के बाद आजादी हासिल करने की सबसे जबर्दस्त कोशिश थी.

अगस्त क्रांति वास्तव में वह जनता के संकल्प का आंदोलन था, क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व सलाखों के पीछे चला गया था और जनता आगे आ गई थी. जिस तरह पिछले साल सरकार ने नोटबंदी के परिणामों पर ज्यादा विचार किए बगैर फैसला किया था, तकरीबन वैसा ही सन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन का फैसला था. उस आंदोलन ने देश को फौरन आजाद नहीं कराया, पर विदेशी शासन की बुनियाद हिलाकर रख दी.