संजय लीला भंसाली की ‘पद्मावती’
पहली फिल्म नहीं है, जो विवाद का विषय बनी हो. इस फिल्म का राजपूत संगठन विरोध कर
रहे हैं. उनका कहना है कि इतिहास के साथ छेड़छाड़ कर फिल्म को बनाया गया है. फिल्मों,
साहित्यिक कृतियों, नाटकों और अभिव्यक्ति के दूसरे माध्यमों का विरोध यदि शब्दों
और विचारों तक सीमित रहे तो उसे स्वीकार किया जा सकता है. पर यदि विरोध में हिंसा
का तत्व शामिल हो जाए, तो सोचना पड़ता है कि हम आधुनिकता की ओर बढ़ रहे हैं या
पीछे जा रहे हैं. विरोध के इस तरीके के कारण फिल्म की ऐतिहासिकता का सवाल पीछे चला
गया है. चिंता का विषय यह है कि जैसे-जैसे हम आधुनिक होते जा रहे हैं, हमारे
तौर-तरीके मध्य युगीन होते जा रहे हैं. फ्रांस की कार्टून पत्रिका 'शार्ली एब्दो' पर हमला गलत था, तो इस हमले की धमकी भी गलत है.
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Monday, November 20, 2017
Wednesday, November 8, 2017
नोटबंदी के सभी पहलुओं को पढ़ना चाहिए
करेंट सा झटका
इस
साल अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार शिकागो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रिचर्ड एच
थेलर को दिया गया है. उनका ज्यादातर काम सामान्य लोगों के आर्थिक फैसलों को लेकर
है. अक्सर लोगों के फैसले आर्थिक सिद्धांत पर खरे नहीं होते. उन्हें रास्ता बताना
पड़ता है. इसे अंग्रेजी में ‘नज’ कहते हैं. इंगित या आश्वस्त करना. पिछले साल
जब नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी की घोषणा की, तब प्रो थेलर ने इस कदम का स्वागत किया
था. जब उन्हें पता लगा कि 2000 रुपये का नोट शुरू किया जा रहा है, तो उन्होंने
कहा, यह गलत है. नोटबंदी को सही या गलत साबित करने वाले लोग इस बात के दोनों मतलब
निकाल रहे हैं.
सौ
साल पहले हुई ‘बोल्शेविक क्रांति’ को लेकर आज भी अपने-अपने निष्कर्ष हैं.
वैसे ही निष्कर्ष नोटबंदी को लेकर हैं. वैश्विक
इतिहास का यह अपने किस्म का सबसे बड़ा और जोखिमों के कारण सबसे ‘बोल्ड’ फैसला था. अरुण शौरी कहते हैं कि ‘बोल्ड’ फैसला आत्महत्या का भी होता है. पर यह आत्महत्या नहीं थी. हमारी अर्थव्यवस्था
जीवित है. पचास दिन में हालात काबू में नहीं आए, पर आए.
Thursday, November 2, 2017
ट्रंप के नाम आतंक की खुली चुनौती
डोनाल्ड ट्रंप के
नाम यह खुली चुनौती है, क्योंकि उनके राष्ट्रपति बनने के बाद से इस्लामी आतंकवाद
की अपने किस्म की बड़ी घटना है. राष्ट्रपति ट्रंप ने दुनिया से जिस इस्लामी
आतंकवाद के सफाए की जिम्मेदारी ली है वह उनके घर के भीतर घुसकर मार कर रहा है.
शायद इसीलिए लोअर मैनहटन में हुए नवीनतम आतंकी हमले के बाद उनकी प्रतिक्रिया काफी
तेजी से आई है.
ट्रंप ने अपने ट्वीट
में कहा है कि आइसिस को हमने पश्चिम एशिया में परास्त कर दिया है, उसे हम अमेरिका
में प्रवेश करने नहीं देंगे. ट्रंप ने मैनहटन की घटना को बीमार व्यक्ति की
कार्रवाई बताया है. इस साल इस तरह की यह दूसरी घटना है. इससे पहले बोस्टन में इसी
तरह की घटना में एक सिरफिरे ने कार को भीड़ के ऊपर चढ़ा दिया था. वहाँ 11 लोग घायल
हुए थे.
Friday, October 13, 2017
आरुषि कांड: क्या अब न्याय हो गया?
26
नवंबर 2013 को जब गाजियाबाद की विशेष सीबीआई अदालत आरुषि-हेमराज हत्याकांड के आरोप
में आरुषि के माता-पिता राजेश और नूपुर तलवार को आईपीसी की धारा- 302 के तहत
उम्रकैद की सज़ा सुनाई थी, तब सवाल उठा था कि क्या वास्तव में इस मामले में न्याय
हो गया है? फैसले के बाद राजेश और नूपुर तलवार की
ओर से मीडिया में एक बयान जारी किया गया,
'हम इस
फैसले से बहुत दुखी हैं. हमें एक ऐसे जुर्म के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है, जो हमने किया ही नहीं. लेकिन हम हार
नहीं मानेंगे और न्याय के लिए लड़ाई जारी रखेंगे.' ट्रायल कोर्ट के फैसले के चार साल बाद अब जब
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तलवार दम्पति को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है,
तब फिर सवाल उठा है कि क्या अब न्याय हुआ है?
सामान्य
न्याय सिद्धांत है कि कानून की पकड़ से भले ही सौ अपराधी बच जाएं, पर एक निर्दोष
को सज़ा नहीं होनी चाहिए. आपराधिक मामलों में अदालतों का सबसे ज्यादा जोर
साक्ष्य पर होता है. सन 2008 में 14 साल की आरुषि की मौत ने देशभर का ध्यान अपनी
तरफ खींचा था. वह पहेली अब तक नहीं सुलझी है. घूम-फिरकर सवाल किया जाता है कि
आरुषि की हत्या किसने की? यह मामला
जाँच की उलझनों में फँसता चला गया.
Wednesday, October 11, 2017
खेल के मैदान में लिखी है बदलते भारत की इबारत
फीफा
की अंडर-17 विश्वकप फुटबॉल प्रतियोगिता के बहाने हमें बदलते भारत की कहानी देखने
की कोशिश करनी चाहिए. यह जूझते भारत और उसके भीतर हो रहे सामाजिक बदलाव की कहानी
है. भारत ने अपना पहला मैच 8 अक्तूबर को खेला, जिसमें अमेरिका की टीम ने हमें 3-0
से हराया. इस हार से हमें निराशा नहीं हुई, क्योंकि फुटबॉल के वैश्विक
मैदान में हमारी स्थिति अमेरिका से बहुत नीचे है. हमारे लिए महत्वपूर्ण बात यह थी
कि भारत की कोई टीम विश्वकप फुटबॉल की किसी भी प्रतियोगिता में पहली बार शामिल हुई
और उसने बहादुरी के साथ खेला. पहले मैच ने भारतीय टीम का हौसला बढ़ाया.
Friday, September 29, 2017
दो सितारों पर टिकीं तमिल राजनीति की निगाहें
तमिलनाडु
बड़े राजनीतिक गतिरोध से होकर गुजर रहा है. सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक के भीतर घमासान
मचा है. अदालत के हस्तक्षेप के कारण वहाँ विधानसभा में इस बात का फैसला भी नहीं हो
पा रहा है कि बहुमत किसके साथ है. दूसरी तरफ द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम इस स्थिति में
नहीं है कि वह इस लड़ाई का फायदा उठा सके. जयललिता के निधन के बाद राज्य में बड़ा
शून्य पैदा हो गया है. द्रमुक पुरोधा करुणानिधि का युग बीत चुका है. उनके बेटे
एमके स्टालिन नए हैं और उन्हें परखा भी नहीं गया है. अलावा राज्य में ऐसा कोई नेता
नहीं है, जिसकी विलक्षण पहचान हो. ऐसे में दो बड़े सिने-कलाकारों की राजनीतिक
महत्वाकांक्षा का धीरे-धीरे खुलना बदलाव के संकेत दे रहा है.
दोनों
कलाकारों के राजनीतिक दृष्टिकोण अपेक्षाकृत सुस्पष्ट होंगे. दोनों के पीछे मजबूत जनाधार है. दोनों के तार स्थानीय और
राष्ट्रीय राजनीति के साथ पहले से या तो जुड़े हुए हैं या जुड़ने लगे हैं. देखना
सिर्फ यह है कि नई राजनीति किस रूप में सामने आएगी और किस करवट बैठेगी. धन-शक्ति,
लाठी, धर्म और जाति के भावनात्मक नारों से उकताई तमिलनाडु ही नहीं देश की जनता को
एक नई राजनीति का इंतजार है. क्या ये दो कलाकार उस राजनीति को जन्म देंगे? क्या यह राजनीति केवल तमिलनाडु तक सीमित
होगी या उसकी अपील राष्ट्रीय होगी? इतना साफ है
कि राजनीति में प्रवेश के लिए यह सबसे उपयुक्त समय है.
Wednesday, September 20, 2017
सेना से जुड़ी जन-भावनाएं
वायु
सेना के मार्शल अर्जन सिंह के अंतिम संस्कार के समय सरकारी व्यवस्था पर प्रेक्षकों
ने खासतौर से ध्यान दिया है. उनके अंतिम संस्कार के पहले रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन
ने बरार स्क्वायर पहुंच कर उन्हें अंतिम विदाई दी. रविवार को प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी ने उनके घर जाकर श्रद्धांजलि दी. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने
भी बरार स्क्वायर पहुंच कर श्रद्धांजलि दी. सेना के तीनों अंगों के प्रमुख भी उन्हें
अंतिम विदाई देने के लिए मौजूद रहे. तमाम केन्द्रीय मंत्री और अधिकारी उन्हें
श्रद्धांजलि अर्पित करने पहुँचे. मीडिया ने काफी व्यापक कवरेज दी.
Friday, August 25, 2017
निजता को लेकर कितने जागरूक हैं हम?
व्यक्ति की निजता पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को हम ज्यादा
से ज्यादा ‘आधार कार्ड’ से जोड़कर देख पाते हैं. बहुत बड़ी तादाद
ऐसे लोगों की है, जो समझ नहीं पा रहे हैं कि हमारी जिंदगी में इस फैसले का क्या असर
होगा. इस फैसले का मतलब यह है कि अब हमारे जीवन में सरकार का निरंकुश हस्तक्षेप
नहीं हो पाएगा. सिद्धांत रूप में यह अच्छी बात है, पर इसका व्यावहारिक रूप तभी
सामने आएगा, जब जनता का व्यावहारिक सशक्तिकरण होगा.
यह मामला केवल व्यक्तिगत जानकारियाँ हासिल करने तक सीमित
नहीं है. इसका आशय है कि व्यक्ति को खाने, पीने, पहनने, घूमने, रहने, प्रेम करने, शादी करने या
जीवन शैली अपनाने जैसी और बहुत सी बातों में अपने फैसले अपनी मर्जी से करने का
अधिकार है. यह जीवन के किन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण साबित होगा, इसका पता भविष्य
में लगेगा, इसलिए इसे भविष्य का अधिकार कहना भी गलत नहीं होगा.
Wednesday, August 9, 2017
ताजा करें अगस्त क्रांति की याद
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ताजा 'मन की बात' में ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन का उल्लेख करते हुए कहा है कि देश
की जनता को अस्वच्छता, गरीबी, आतंकवाद, जातिवाद और
संप्रदायवाद को खत्म करने की शपथ लेनी चाहिए. यह बड़े मौके की बात है. उस आंदोलन को हम आज
के हालात से जोड़ सकते हैं. हालांकि वह आंदोलन संगठित तरीके से नहीं चला, पर सन
1857 के बाद आजादी हासिल करने की सबसे जबर्दस्त कोशिश थी.
अगस्त क्रांति वास्तव में वह जनता के संकल्प का आंदोलन
था, क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व सलाखों के पीछे चला गया था और जनता आगे आ
गई थी. जिस तरह पिछले साल सरकार ने नोटबंदी के परिणामों पर ज्यादा विचार किए बगैर
फैसला किया था, तकरीबन वैसा ही सन 1942 के ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन का फैसला था. उस आंदोलन ने देश को
फौरन आजाद नहीं कराया, पर विदेशी शासन की बुनियाद हिलाकर रख दी.
Friday, August 4, 2017
आतंकवाद का सायबर संग्राम
पिछले हफ्ते राष्ट्रीय जाँच एजेंसी ने जम्मू-कश्मीर में आतंकी गतिविधियों
को चलाने के लिए पाकिस्तान से पैसा लाने की साजिश के सिलसिले में कुछ लोगों को
गिरफ्तार किया है. एजेंसी ने अपनी जाँच में कश्मीर की घाटी के करीब चार दर्जन ऐसे
किशोरों का पता लगाया है जो नियमित रूप से सुरक्षा बलों पर पत्थर मारने का काम
करते हैं.
इन किशोरों के बारे में दूसरी बातों के अलावा यह बात भी पता लगी कि वे वॉट्सएप
ग्रुपों के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़े हैं. इन ग्रुपों को पाकिस्तान में बैठे
लोग चलाते हैं. ये लोग एक तरफ तो बच्चों को बरगलाने के लिए भड़काने वाली सामग्री
डालते हैं और दूसरी तरफ पत्थर मारने से जुड़े कार्यक्रमों और दूसरे निर्देशों से
इन्हें परिचित कराते हैं. वॉट्सएप जैसे एनक्रिप्टेड संदेशों को पकड़ना आसान भी
नहीं है.
Wednesday, July 26, 2017
कर्नाटक का राज्य-ध्वज और हिंदी-विरोध
अगले साल कर्नाटक विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं. उसकी
तैयारी में राज्य की कांग्रेस सरकार कई तरह के लोक-लुभावन कार्यक्रमों की घोषणाएं
कर रही है. 15 अगस्त से नागरिकों को सस्ता भोजन देने की इंदिरा गांधी कैंटीन योजना
शुरू होने वाली है, जिसका उद्घाटन करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी
खासतौर से बेंगलुरु आएंगी. यह कार्यक्रम तमिलनाडु की अम्मा कैंटीन से प्रभावित है.
लोक-लुभावन कार्यक्रम राजनीति का हिस्सा हैं. उन्हें स्वीकार कर लिया गया है. पर
कर्नाटक की हाल की कुछ घटनाओं से लगता है कि वहाँ लोगों की भावनाओं से खेलने की
कोशिश की जा रही है.
मुख्यमंत्री एस सिद्धरमैया ने पिछले सोमवार को राज्य का
अलग से ध्वज डिजाइन करने के लिए नौ सदस्यों की समिति बनाने की घोषणा की है. उसके
बाद यह बहस शुरू हो गई है कि किसी राज्य का अपना अलग ध्वज होना चाहिए या नहीं. यह
बहस चल ही रही है. सन 2004 में कर्नाटक राज्य ने अपना राज्य-गान भी स्वीकार किया
था. राज्य के संगीतकार सी अश्वथ ने उसकी धुन तैयार की थी, पर उस धुन के मानक
स्वरूप को अभी स्वीकार नहीं किया गया है. महाराष्ट्र के साथ राज्य की सीमा को लेकर
भी विवाद हैं.
Monday, July 17, 2017
नए दौर में प्रवेश करती भारतीय राजनीति
राजनीतिक
गलियारों में डेढ़-दो महीने की अपेक्षाकृत चुप्पी के बाद आज दो बड़ी राजनीतिक
घटनाएं होने जा रहीं हैं, जिनका राजनीति पर असर देखने को मिलेगा. देश के चौदहवें
राष्ट्रपति के चुनाव के अलावा संसद का मॉनसून सत्र आज शुरू हो रहा है. सोलहवीं
लोकसभा के तीन साल गुजर जाने के बाद यह पहला मौका है, जब 18 विरोधी दल एक सामूहिक
रणनीति के साथ संसद में उतर रहे हैं. पिछले मंगलवार को इन दलों ने उप-राष्ट्रपति
पद के प्रत्याशी का नाम तय करने के साथ अपनी भावी रणनीति का खाका भी तय किया है. ये
दल अब महीने में कम से कम एक बार बैठक करेंगे. ये बैठकें दिल्ली में ही नहीं
अलग-अलग राज्यों में होंगी. ज्यादा महत्वपूर्ण है संसदीय गतिविधियों में इनका समन्वय.
राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक ध्रुवीकरण की प्रक्रिया अब क्रमशः तेज होगी.
Friday, July 7, 2017
भारतीय भाषाओं को लड़ाने की कोशिश
बंगाल में जड़ें जमाने की कोशिश में भारतीय जनता पार्टी साम्प्रदायिक सवालों को उठा रही है. उसके लिए परिस्थितियाँ अच्छी हैं, क्योंकि ममता बनर्जी ने इस किस्म की राजनीति के दूसरे छोर पर कब्जा कर रखा है. भावनाओं की खेती के अर्थशास्त्र को समझना है तो वोट की राजनीति पढ़ना चाहिए. ऐसी ही खेती का जरिया भाषाएं हैं. कर्नाटक में अगले साल चुनाव होने वाले हैं. उसके पहले वहाँ भाषा को लेकर एक अभियान शुरू हुआ है. राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस तीन भाषा सूत्र की समर्थक है, पर बेंगलुरु मेट्रो में हिंदी विरोध की वह समर्थक है. साम्प्रदायिक राजनीति का यह एक और रूप है, इसमें सम्प्रदाय की जगह भाषा ले लेती है. भाषा सामूहिक पहचान से जुड़ी है. इस आंदोलन के पीछे अंग्रेजी-परस्त लोग भी शामिल हैं, क्योंकि अंग्रेजी उन्हें 'साहब' की पहचान देने में मददगार है.
इन
दिनों बेंगलुरु मेट्रो के सूचना-पटों में अंग्रेजी और कन्नड़ के साथ हिंदी के
प्रयोग को लेकर एक आंदोलन चलाया जा रहा है. इस आंदोलन को अंग्रेजी मीडिया ने हवा
भी दी है. शहर के कुछ मेट्रो स्टेशनों में हिंदी में लिखे नाम ढक दिए गए हैं. ऐसा
ही एक आंदोलन कुछ समय पहले दक्षिण भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों के नाम-पटों में
हिंदी को शामिल करने के विरोध में खड़ा हुआ था. हाल में राम गुहा और शशि थरूर जैसे
लोगों ने बेंगलुरु मेट्रो-प्रसंग में हिंदी थोपे जाने का विरोध किया है. एक तरह से
यह भारतीय भाषाओं को आपस में लड़ाने की कोशिश है. साथ ही अंग्रेजी के ध्वस्त होते
किले को बचाने का प्रयास भी.
Thursday, July 6, 2017
डगमग होती विपक्षी एकता
बुधवार
को मीरा कुमार ने औपचारिक रूप से पर्चा दाखिल करने के बाद अपने प्रचार-अभियान की
शुरूआत कर दी है. उनका कहना है कि यह सिद्धांत की लड़ाई है. संविधान की रक्षा के
लिए और देश को साम्प्रदायिक ताकतों के हाथ में जाने से रोकने के लिए वे खड़ी हुई
हैं. वस्तुतः यह सन 2019 के चुनाव में गैर-बीजेपी गठजोड़ का प्रस्थान बिंदु है. देशभर
में असहिष्णुता और अल्पसंख्यकों की हत्याओं के खिलाफ आंदोलन खड़ा हो गया है. यह उस
राजनीति का पहला अध्याय है, जो राष्ट्रीय स्तर पर उभरेगी.
मीरा
कुमार के नामांकन के वक्त 17 दलों के प्रतिनिधि उपस्थित थे. इनके नाम हैं कांग्रेस,
सपा, बसपा, राजद, वाममोर्चा के चार दल, तृणमूल कांग्रेस, राकांपा, नेशनल
कांफ्रेंस, डीएमके, झामुमो, जेडीएस, एआईयूडीएफ, केरल कांग्रेस, मुस्लिम लीग. आम
आदमी पार्टी इस प्रक्रिया में शामिल नहीं थी, पर वह भी मीरा कुमार के साथ जाएगी. यह प्रभावशाली संख्या है, पर इसके
मुख्य सूत्रधार कांग्रेस और वामदल हैं. धर्म-निरपेक्ष राजनीति का काफी बड़ा हिस्सा
इस राजनीति से बाहर है.
Friday, June 16, 2017
अंतर्विरोधों की शिकार आम आदमी पार्टी
कुमार विश्वास और
अरविंद केजरीवाल के बीच अविश्वास की ‘अदृश्य दीवार’ अब नजर आने
लगी है. पिछले शनिवार को राजस्थान के कार्यकर्ताओं की सभा में कुमार विश्वास ने जो
कुछ कहा, वह पार्टी हाई कमान को तिलमिलाने भर के लिए काफी था. दिल्ली नगर निगम के
चुनाव के बाद से कुमार विश्वास पार्टी के साथ अपने मतभेदों को व्यक्त कर रहे हैं.
उन्होंने हाल में एक मीडिया इंटरव्यू में पार्टी के ट्वीट कल्चर पर भी टिप्पणी करते
हुए कहा, ‘जो लोग ट्विटर को देश समझते हैं, वे ही देश को ट्विटर समझते हैं.’
हाल में पार्टी
में हुए फेरबदल के बाद कुमार विश्वास को राजस्थान का प्रभार दिया गया है. वहाँ
अगले साल विधानसभा चुनाव हैं. राजस्थान इकाई की पहली बैठक में घोषणा की गई कि
पार्टी अरविन्द केजरीवाल के चेहरे पर चुनाव नहीं लड़ेगी. बैठक में यह भी कहा गया कि
पार्टी ‘महारानी हटाओ’ अभियान के बजाय पानी, बिजली और बेहतर स्वास्थ्य जैसे मसलों को लेकर चुनाव
लड़ेगी. दिल्ली का वर्चस्ववाद
नहीं चलाया जाएगा. कार्यकर्ता ही प्रदेश के फैसलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे
वगैरह.
Friday, June 9, 2017
‘टेरर फंडिंग’ की वैश्विक परिभाषा भी हो
नेशनल
इनवेस्टिगेशन एजेंसी ने पिछले कुछ दिनों में कश्मीर, दिल्ली और हरियाणा में 40 से ज्यादा जगहों पर छापेमारी करके टेरर
फंडिंग के कुछ सूत्रों को जोड़ने की कोशिश की है. हाल में एक स्टिंग ऑपरेशन से यह
बात उजागर हुई थी कि कश्मीर की घाटी में हुर्रियत के नेताओं के अलावा दूसरे समूहों
को पाकिस्तान से पैसा मिल रहा है. इन छापों में नकदी, सोना और विदेशी मुद्रा के
अलावा कुछ ऐसे दस्तावेज भी मिले हैं, जिनसे पता लगता है कि आतंकी नेटवर्क हमारी
जानकारी के मुकाबले कहीं ज्यादा बड़ा है.
एनआईए
ने कुछ बैंक खातों को फ़्रीज़ कराया है और कुछ लॉकरों को सील. यह छापेमारी ऐसे दौर
में हुई है जब आतंकी फंडिंग पर नजर रखने वाली संस्था द फाइनैंशल एक्शन
टास्क फोर्स इस सिलसिले में जाँच कर रही है. हमें इस संस्था के सामने सप्रमाण जाना
चाहिए. पिछले
कई साल से संयुक्त राष्ट्र में ‘कांप्रिहैंसिव कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल टेररिज्म’ को
लेकर विमर्श चल रहा है, पर टेररिज्म की परिभाषा को लेकर सारा मामला अटका हुआ है.
जब तक ऐसी संधि नहीं होगी, हम साबित नहीं कर पाएंगे कि कश्मीरी आंदोलन का चरित्र
क्या है.
Wednesday, May 31, 2017
कश्मीर को बचाए रखने में सेना की भूमिका भी है
जनरल बिपिन रावत के तीखे तेवरों का संदेश क्या है? मेजर गोगोई की पहल को क्या हम मानवाधिकार
उल्लंघन के दायरे में रखते हैं? क्या जनरल
रावत का कश्मीरी आंदोलनकारियों को हथियार उठाने की चुनौती देना उचित है? उन्होंने क्यों कहा कि कश्मीरी पत्थर की जगह
गोली चलाएं तो बेहतर है? तब हम वो
करेंगे जो करना चाहते हैं। उन्होंने क्यों कहा कि लोगों में सेना का डर खत्म होने
पर देश का विनाश हो जाता है? उनके स्वर राजनेता
जैसे हैं या उनसे सैनिक का गुस्सा टपक रहा है?
कश्मीर केवल राजनीतिक समस्या नहीं है, उसका सामरिक आयाम
भी है। हथियारबंद लोगों का सामना सेना ही करती है और कर रही है। वहाँ के राजनीतिक
हालात सेना ने नहीं बिगाड़े। जनरल रावत को तीन सीनियर अफसरों पर तरजीह देकर
सेनाध्यक्ष बनाया गया था। तब रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने कहा था कि यह नियुक्ति
बहुत सोच समझ कर की गई है। नियुक्ति के परिणाम सामने आ रहे हैं। सेना ने दक्षिण कश्मीर के आतंक पीड़ित
इलाकों में कॉम्बिंग ऑपरेशन चला रखा है। पिछले दो हफ्तों में उसे सफलताएं भी मिली
हैं।
Wednesday, May 24, 2017
‘दीदी’ का बढ़ता राष्ट्रीय रसूख
बंगाल की मुख्यमंत्री बनने के बाद भी ममता बनर्जी की राष्ट्रीय अभिलाषा
दबी-छिपी नहीं है. पिछले साल नवंबर में नोटबंदी के बाद सबसे पहले उसके खिलाफ
आंदोलन उन्होंने ही शुरू किया. उनकी पार्टी का नाम ‘अखिल भारतीय’ तृणमूल कांग्रेस है. वे
साबित करती रही हैं कि क्षेत्रीय नहीं, राष्ट्रीय नेता हैं. सन 2012 के राष्ट्रपति
चुनाव में मुलायम सिंह के साथ मिलकर अपनी पसंद के प्रत्याशियों के नाम की पेशकश
सबसे पहले उन्होंने ही की थी. इस बार भी वे पीछे नहीं हैं. पिछले हफ्ते वे इस सिलसिले
में सोनिया गांधी और विपक्ष के कुछ नेताओं से बात करके गईं हैं. राष्ट्रपति पद के
चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बाद तीसरे नंबर पर वोट तृणमूल कांग्रेस के पास
हैं.
ममता की राजनीति टकराव मोल लेने की है. इस तत्व ने भी उनका
रसूख बढ़ाया है. बंगाल में इसी आक्रामक शैली से उन्होंने सीपीएम को मात दी. नरेंद्र मोदी के खिलाफ
राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन की योजना में भी उनकी केंद्रीय भूमिका हो सकती है.
बहरहाल हाल में ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल के सात नगरपालिका क्षेत्रों में हुए चुनावों
की वजह से भी खबरों में हैं. इन चुनावों का राष्ट्रीय राजनीति के साथ कोई बड़ा
रिश्ता नहीं है, पर कुछ कारणों से ये चुनाव राष्ट्रीय खबर बने.
Thursday, April 27, 2017
भँवर में घिरी आम आदमी पार्टी
यह पहला मौका है, जब एमसीडी के चुनावों ने इतने बड़े स्तर पर देशभर का ध्यान अपनी ओर खींचा. वस्तुतः ये नगरपालिका चुनाव की तरह लड़े ही नहीं गए. इनका आयाम राष्ट्रीय था, प्रचार राष्ट्रीय और परिणामों की धमक भी राष्ट्रीय है. सहज रूप से नगर निगम के चुनाव में साज-सफाई और दूसरे नागरिक मसलों को हावी रहना चाहिए था. ऐसा होता तो बीजेपी के लिए जीतना मुश्किल होता, क्योंकि पिछले दस साल से उसका एमसीडी पर कब्जा होने के कारण जनता की नाराजगी स्वाभाविक थी. पर हुआ यह कि दस साल की एंटी इनकम्बैंसी के ताप से बीजेपी को ‘मोदी के जादू’ ने बचा लिया.
एमसीडी चुनाव की ज्यादा बड़ी खबर है आम आदमी पार्टी की पराजय. सन 2012 तक दिल्ली में बीजेपी और कांग्रेस ही दो प्रमुख दल थे. सन 2013 के अंतिम दिनों में हुए विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी एक तीसरी ताकत के रूप में उभरी. पर वह नम्बर एक ताकत नहीं थी. सन 2015 में फिर से हुए चुनाव में वह अभूतपूर्व बहुमत के साथ सामने आई. उस विशाल बहुमत ने ‘आप’ को बजाय ताकत देने के कमजोर कर दिया. एक तरफ जनता के मन में अपेक्षाएं बढ़ी, वहीं पार्टी कार्यकर्ता के मन में सत्ता की मलाई खाने की भूख. पार्टी ने अपने विधायकों को पद देने के लिए 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति की. इससे एक तरफ कानूनी दिक्कतें बढ़ीं, वहीं पंजाब में पार्टी के भीतर मारा-मारी बढ़ी, जहाँ सत्ता मिलने की सम्भावनाएं बन रहीं थीं.
एमसीडी चुनाव की ज्यादा बड़ी खबर है आम आदमी पार्टी की पराजय. सन 2012 तक दिल्ली में बीजेपी और कांग्रेस ही दो प्रमुख दल थे. सन 2013 के अंतिम दिनों में हुए विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी एक तीसरी ताकत के रूप में उभरी. पर वह नम्बर एक ताकत नहीं थी. सन 2015 में फिर से हुए चुनाव में वह अभूतपूर्व बहुमत के साथ सामने आई. उस विशाल बहुमत ने ‘आप’ को बजाय ताकत देने के कमजोर कर दिया. एक तरफ जनता के मन में अपेक्षाएं बढ़ी, वहीं पार्टी कार्यकर्ता के मन में सत्ता की मलाई खाने की भूख. पार्टी ने अपने विधायकों को पद देने के लिए 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति की. इससे एक तरफ कानूनी दिक्कतें बढ़ीं, वहीं पंजाब में पार्टी के भीतर मारा-मारी बढ़ी, जहाँ सत्ता मिलने की सम्भावनाएं बन रहीं थीं.
Tuesday, March 28, 2017
ट्रंप को लगते शुरूआती झटके
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कामकाज के 100 दिन पूरे नहीं हुए हैं. इतने
कम समय में ही वे कई तरह के विवादों में फँसने लगे हैं. स्पष्ट है कि शत्रु उनका
पीछा नहीं छोड़ रहे हैं. ट्रंप ने मीडिया की भी तल्ख आलोचना की है. इन विवादों की
वजह से उनके राजनीतिक एजेंडा को चोट लग रही है. आतंकवाद से लड़ाई की बिना पर
उन्होंने पश्चिम एशिया के कुछ देशों के नागरिकों के अमेरिका आगमन पर पाबंदियाँ
लगाने की जो कोशिशें कीं, उन्हें अदालती अड़ंगों सा सामना करना पड़ा. हैल्थ-केयर
और टैक्स रिफॉर्म के उनके एजेंडा पर भी काले बादल छाए हैं.
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