राहुल गांधी 16 दिसंबर को औपचारिक रूप से पार्टी अध्यक्ष का पद संभाल
लिया। उसके एक दिन पहले सोनिया गांधी ने
सक्रिय राजनीति से हट जाने की घोषणा की है। उन्होंने यह भी कहा कि राहुल पिछले तीन
साल से राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। कांग्रेस का सबसे बड़ा क्षय
इन्हीं तीन साल में हुआ है। लगता नहीं कि वे अपना हाथ पार्टी से पूरी तरह खींच
पाएंगी। सोनिया गांधी के बयान के बाद पार्टी के कांग्रेस संचार प्रमुख रणदीप
सुरजेवाला ने ट्वीट किया, ‘श्रीमती सोनिया गांधी
कांग्रेस के अध्यक्ष पद से रिटायर हुईं हैं राजनीति से नहीं। उनका आशीर्वाद, ज्ञान और कांग्रेस की विचारधारा के प्रति उनका समर्पण
पार्टी को हमेशा मिलता रहेगा। वे पार्टी के लिए हमेशा पथ प्रदर्शक बनी रहेंगी।’
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Sunday, December 17, 2017
Monday, December 11, 2017
अस्पताल बंद करने से क्या हो जाएगा?
अस्पताल का लाइसेंस रद्द करने से क्या अस्पताल सुधर जाएगा? ऐसा होता तो देश के तमाम सरकारी अस्पताल अबतक बंद हो चुके होते। जनता नाराज है और उसकी नाराजगी का दोहन करने में ऐसे फैसलों से कुछ देर के लिए मदद मिल सकती है, पर यह बीमारी का इलाज नहीं है, बल्कि उससे दूर भागना है। सरकारी हों या निजी अस्पतालों के मानकों को मजबूती से लागू कराइए, पर उन्हें बंद मत कीजिए, बल्कि नए अस्पताल खोलिए। जनता को इस बात की जानकारी भी होनी कि देश में अस्पताल और स्कूल खोलने और उन्हें चलाने के लिए कितने लोगों की जेब भरनी पड़ती है।
शिक्षा, स्वास्थ्य और न्याय तीन ऐसी सुविधाएं हैं, जो खरीदने वाली वस्तुएं बन गईं हैं, जबकि इन्हें हासिल करने का समान अवसर नागरिकों के पास होना चाहिए। हमारी व्यवस्थाएं चुस्त होतीं, तो अस्पताल खुली लूट नहीं मचा पाते। मेरा इरादा अस्पतालों के मैनेजमेंट की मदद करना नहीं है। वास्तव में यह धंधा है, जिसपर बड़ी पूँजी लगी है। पर यह धंधा क्यों बन गया, इसपर हमें विचार करना चाहिए? हमारा देश सार्वजनिक स्वास्थ्य के मामले में दुनिया के सबसे खराब देशों में शामिल किया जाता है। बावजूद इसके हमारे यहाँ तमाम दूसरे देशों से लोग इलाज कराने आ रहे हैं। हमारे तौर-तरीकों में अंतर्विरोध हैं। ऐसा भी नहीं है कि डॉक्टरों ने हत्या करने का काम शुरू कर दिया है। कोई डॉक्टर सायास किसी की हत्या नहीं करेगा। वह उपेक्षा कर सकता है, लापरवाही बरत सकता है और वह अकुशल भी हो सकता है, पर यदि हम उसके इरादे पर शक करेंगे तो चिकित्सा व्यवस्था को चलाना मुश्किल हो जाएगा।
शिक्षा, स्वास्थ्य और न्याय तीन ऐसी सुविधाएं हैं, जो खरीदने वाली वस्तुएं बन गईं हैं, जबकि इन्हें हासिल करने का समान अवसर नागरिकों के पास होना चाहिए। हमारी व्यवस्थाएं चुस्त होतीं, तो अस्पताल खुली लूट नहीं मचा पाते। मेरा इरादा अस्पतालों के मैनेजमेंट की मदद करना नहीं है। वास्तव में यह धंधा है, जिसपर बड़ी पूँजी लगी है। पर यह धंधा क्यों बन गया, इसपर हमें विचार करना चाहिए? हमारा देश सार्वजनिक स्वास्थ्य के मामले में दुनिया के सबसे खराब देशों में शामिल किया जाता है। बावजूद इसके हमारे यहाँ तमाम दूसरे देशों से लोग इलाज कराने आ रहे हैं। हमारे तौर-तरीकों में अंतर्विरोध हैं। ऐसा भी नहीं है कि डॉक्टरों ने हत्या करने का काम शुरू कर दिया है। कोई डॉक्टर सायास किसी की हत्या नहीं करेगा। वह उपेक्षा कर सकता है, लापरवाही बरत सकता है और वह अकुशल भी हो सकता है, पर यदि हम उसके इरादे पर शक करेंगे तो चिकित्सा व्यवस्था को चलाना मुश्किल हो जाएगा।
नवजात शिशु को मृत
बताने वाले मैक्स शालीमार बाग अस्पताल का दिल्ली सरकार ने लाइसेंस रद्द कर दिया
है। सरकार का कहना है कि इस किस्म की लापरवाही स्वीकार नहीं की जा सकती। एक महिला
ने दो बच्चों को जन्म दिया था। अस्पताल ने दोनों को मृत बताकर उन्हें पॉलिथीन में
लपेटकर परिजनों को सौंप दिया था। अंतिम संस्कार के लिए ले जाते वक्त परिजनों ने एक
बच्चे में हरकत देखी, जिसके बाद नवजात को एक
दूसरे हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। कुछ दिन बाद उस शिशु की भी मौत हो गई। यह खबर
प्राइवेट अस्पताल से आई है, पर कुछ महीने ऐसी ही घटना दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल
में भी हुई थी। क्या उसे बंद करना चाहिए?
Sunday, December 3, 2017
अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत
पिछले एक साल से आर्थिक खबरें राजनीति पर भारी हैं। पहले नोटबंदी, फिर जीएसटी और फिर साल की पहली तिमाही में जीडीपी का 5.7 फीसदी पर पहुँच जाना सनसनीखेज समाचार बनकर उभरा। उधर सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इकोनॉमी (सीएमआईई) ने अनुमान लगाया कि नोटबंदी के कारण इस साल जनवरी से अप्रेल के बीच करीब 15 लाख रोजगार कम हो गए। इन खबरों का विश्लेषण चल ही रहा था कि जुलाई से जीएसटी लागू हो गया, जिसकी वजह से व्यापारियों को शुरूआती दिक्कतें होने लगीं।
गुजरात का चुनाव करीब होने की वजह से इन खबरों के राजनीतिक निहितार्थ हैं। कांग्रेस पार्टी ने गुजरात में अपने सारे घोड़े खोल दिए हैं। राहुल गांधी ने ‘गब्बर सिंह टैक्स’ के खिलाफ अभियान छेड़ दिया है। उनका कहना है कि अर्थ-व्यवस्था गड्ढे में जा रही है। क्या वास्तव में ऐसा है? बेशक बड़े स्तर पर आर्थिक सुधारों की वजह से झटके लगे हैं, पर अर्थ-व्यव्यस्था के सभी महत्वपूर्ण संकेतक बता रहे हैं कि स्थितियाँ बेहतर हो रहीं है।
गुजरात का चुनाव करीब होने की वजह से इन खबरों के राजनीतिक निहितार्थ हैं। कांग्रेस पार्टी ने गुजरात में अपने सारे घोड़े खोल दिए हैं। राहुल गांधी ने ‘गब्बर सिंह टैक्स’ के खिलाफ अभियान छेड़ दिया है। उनका कहना है कि अर्थ-व्यवस्था गड्ढे में जा रही है। क्या वास्तव में ऐसा है? बेशक बड़े स्तर पर आर्थिक सुधारों की वजह से झटके लगे हैं, पर अर्थ-व्यव्यस्था के सभी महत्वपूर्ण संकेतक बता रहे हैं कि स्थितियाँ बेहतर हो रहीं है।
Sunday, November 26, 2017
‘परिवार’ कोई जादू की छड़ी नहीं
हाल में मशहूर पहलवान
सुशील कुमार तीन साल बाद राष्ट्रीय कुश्ती चैम्पियनशिप में उतरे और गोल्ड मेडल जीत
ले गए। उन्हें यह मेडल एक के बाद एक तीन लगातार वॉकओवरों के बाद मिला। शायद उनके
वर्ग के पहलवान उनका इतना सम्मान करते हैं कि उनसे लड़ने कोई आया ही नहीं। सुशील
कुमार का चैम्पियन बनना मजबूरी थी। वैसे ही राहुल गांधी के पास अब कांग्रेस पार्टी
की अध्यक्षता स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। पर महत्वपूर्ण अध्यक्ष
बनना नहीं, इस पद का निर्वाह है।
लगातार बड़ी विफलताओं के
बावजूद राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने का आग्रह कांग्रेस पार्टी के हित में होगा या
नहीं, इसे देखना होगा। राहुल गांधी जिस दौर में अध्यक्ष बनने जा रहे हैं, वह
कांग्रेस का सबसे खराब दौर है। यदि वे यहाँ से कांग्रेस की स्थिति को बेहतर बनाने
में कामयाब नहीं हुए तो यह कदम आत्मघाती भी साबित हो सकता है। दिक्कत यह है कि
कांग्रेस केवल परिवार के सहारे राजनीति में बने रहना चाहती है।
Sunday, November 19, 2017
मूडीज़ अपग्रेड, बेहतरी का इशारा
नोटबंदी
और जीएसटी कदमों के कारण बैकफुट पर आई मोदी सरकार को मूडीज़ अपग्रेड से काफी
मदद मिलेगी। इसके पहले विश्व बैंक के ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस इंडेक्स में भारत 30
पायदान की लंबी छलांग के साथ 100वें स्थान पर पहुंच गया था। यह पहला मौका था, जब
भारत ने इतनी लंबी छलांग लगाई। विशेषज्ञों की मानें तो कारोबार करने के मामले में
भारत की रैंकिंग में सुधार से कई क्षेत्र को लाभ होगा। हालांकि मूडीज़ रैंकिंग का
कारोबारी सुगमता रैंकिंग से सीधा रिश्ता नहीं है, पर अंतरराष्ट्रीय पूँजी के
प्रवाह के नजरिए से रिश्ता है। देश की आंतरिक राजनीति के लिहाज से भी यह खबर
महत्वपूर्ण है, क्योंकि नोटबंदी और जीएसटी को लेकर सरकार पर हो रहे प्रहार अब
हल्के पड़ जाएंगे।
मोदी
सरकार आर्थिक नीति के निहायत नाजुक मोड़ पर खड़ी है। अगले हफ्ते अर्थ-व्यवस्था की
दूसरी तिमाही की रिपोर्ट आने की आशा है। पिछली तिमाही में आर्थिक संवृद्धि की दर
गिरकर 5.7 फीसदी हो जाने पर विरोधियों ने सरकार को घेर लिया था। उम्मीद है कि इस
तिमाही से गिरावट का माहौल खत्म होगा और अर्थ-व्यवस्था में उठान आएगा। ये सारे कदम
जादू की छड़ी जैसे काम नहीं करेंगे। मूडीज़ ने भी भारत को ऋण और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के
ऊंचे अनुपात पर चेताया है। उसने यह भी कहा है कि भूमि और श्रम सुधारों का एजेंडा
अभी पूरा नहीं हुआ है।
Sunday, November 12, 2017
प्रदूषण से ज्यादा उसकी राजनीति का खतरा
विश्व
स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदूषण के कारण दिल्ली में
सालाना 10,000 से 30,000 मौतें होती हैं। रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 20 सबसे
प्रदूषित शहरों की सूची में 13 भारत के शहर हैं। इनमें राजधानी दिल्ली सबसे ऊपर
है। उस रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली की हवा में पार्टिकुलेट मैटर पीएम 2.5 की मात्रा
प्रति घन मीटर 150 माइक्रोग्राम है। पर पिछले बुधवार को एनवायरनमेंट पल्यूशन बोर्ड
के मुताबिक दिल्ली की हवा में प्रति घन मीटर 200 माइक्रोग्राम पीएम 2.5 प्रदूषक
तत्व दर्ज किए गए। यह विश्व स्वास्थ्य संगठन की सेफ लिमिट से 8 गुना ज्यादा है। 25
माइक्रोग्राम को सेफ लिमिट मानते हैं।
सन 2014
में विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक सर्वे ने दुनियाभर के 1,600 देशों में से दिल्ली
को सबसे ज्यादा दूषित करार दिया था। बार-बार लगातार इन बातों की प्रतिध्वनि सुनाई
पड़ रही है। सवाल है कि हमने इस सिलसिले में किया क्या है? पिछले कुछ दिन से एक तरफ दिल्ली में प्रदूषण
का अंधियारा फैला तो दूसरी तरफ सरकारों और सरकारी संगठनों की बयानबाज़ी होने लगी।
समस्या प्रदूषण है या उसकी राजनीति? यह सिर्फ इस
साल की समस्या नहीं है और आने वाले दिनों में यह बढ़ती ही जाएगी। क्या हम एक-दूसरे
पर दोषारोपण करके इसका समाधान कर लेंगे?
Sunday, November 5, 2017
पटेल को क्यों भूली कांग्रेस?
नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस के कम से कम तीन बड़े नेताओं को खुले तौर पर अंगीकार किया है। ये तीन हैं गांधी, पटेल और लाल बहादुर शास्त्री। मोदी-विरोधी मानते हैं कि इन नेताओं की लोकप्रियता का लाभ उठाने की यह कोशिश है। बीजेपी के नेता कहते हैं कि गांधी ने राजनीतिक दल के रूप में कांग्रेस को भंग कर देने की सलाह दी थी। बीजेपी की महत्वाकांक्षा है कांग्रेस की जगह लेना। इसीलिए मोदी बार-बार कांग्रेस मुक्त भारत की बात करते हैं। आर्थिक नीतियों के स्तर पर दोनों पार्टियों में ज्यादा फर्क भी नहीं है। पिछले साल अरुण शौरी ने कहीं कहा था, बीजेपी माने कांग्रेस+गाय।
Monday, October 30, 2017
बैंक-सुधार में भी तेजी चाहिए
केंद्र सरकार ने पिछले मंगलवार को सार्वजनिक क्षेत्र के
संकटग्रस्त बैंकों में 2.11 लाख करोड़ रुपये की नई पूँजी डालने की घोषणा दो
उद्देश्यों से की है। पहला लक्ष्य इन बैंकों को बचाने का है, पर अंततः इसका
उद्देश्य अर्थ-व्यवस्था को अपेक्षित गति देने का है। पिछले एक दशक से ज्यादा समय
में देश के राष्ट्रीयकृत बैंकों ने जो कर्ज दिए थे, उनकी वापसी ठीक से नहीं हो पाई
है। बैंकों की पूँजी चौपट हो जाने के कारण वे नए कर्जे नहीं दे पा रहे हैं, इससे
कारोबारियों के सामने मुश्किलें पैदा हो रही हैं। इस वजह से अर्थ-व्यवस्था की संवृद्धि
गिरती चली गई।
Sunday, October 22, 2017
क्या कहती है बाजार की चमक
अमेरिका के अख़बार वॉशिंगटन पोस्ट में दिल्ली के चाँदनी चौक की एक मिठाई की
दुकान के मालिक के हवाले से बड़ी सी खबर छपी है ‘मेरे लिए इससे पहले कोई
साल इतना खराब नहीं रहा।’ इस व्यापारी का कहना है कि जो लोग पिछले वर्षों
तक एक हजार रुपया खर्च करते थे, इस साल उन्होंने 600-700 ही खर्च किए। अख़बार की
रिपोर्ट का रुख उसके बाद मोदी सरकार के वायदों और जनता के मोहभंग की ओर घूम गया।
Sunday, October 15, 2017
हम सब हैं आरुषि के अपराधी
Sunday, October 8, 2017
गालियों का ट्विटराइज़ेशन
चौराहों, नुक्कड़ों और
भिंडी-बाजार के स्वर और शब्दावली विद्वानों की संगोष्ठी जैसी शिष्ट-सौम्य नहीं
होती। पर खुले गाली-गलौज को तो मछली बाजार भी नहीं सुनता। वह भाषा हमारे सोशल
मीडिया में प्रवेश कर गई है। हम नहीं जानते कि क्या करें। जरूरत इस बात की है कि
हम देखें कि ऐसा क्यों है और इससे बाहर निकलने का रास्ता क्या है? सोशल मीडिया की आँधी ने
सूचना-प्रसारण के दरवाजे अचानक खोल दिए हैं। तमाम ऐसी बातें सामने आ रहीं हैं, जो
हमें पता नहीं थीं। कई प्रकार के सामाजिक अत्याचारों के खिलाफ जनता की पहलकदमी इसके
कारण बढ़ी है। पर सकारात्मक भूमिका के मुकाबले उसकी नकारात्मक भूमिका चर्चा में है।
Tuesday, October 3, 2017
मोदी का नया सूत्र ‘गाँव और गरीब’
पिछला हफ़्ता अर्थ-व्यवस्था को लेकर खड़े किए गए सवालों
के कारण विवादों में रहा, पर बहुत कम लोगों ने ध्यान दिया कि बीजेपी ने 2019 के
मद्देनजर एक महत्वपूर्ण दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं। पार्टी ने अपने राष्ट्रवादी
एजेंडा के साथ-साथ भ्रष्टाचार के विरोध और गरीबों की हित-रक्षा पर ध्यान केंद्रित
करने का फैसला किया है। अब मोदी का नया सूत्र-वाक्य है, ‘गरीब का सपना, मेरी सरकार का सपना है।’ प्रधानमंत्री ने 25 सितम्बर को दीनदयाल
ऊर्जा भवन का लोकार्पण करते हुए देश के हरेक घर तक बिजली पहुँचाने की ‘सौभाग्य’ योजना का ऐलान किया, जो इस दिशा में एक कदम
है। इस योजना के तहत 31 मार्च 2019 तक देश के हरेक घर तक बिजली कनेक्शन पहुँचा
दिया जाएगा।
पिछले साल मई में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना की घोषणा
हुई थी, जो काफी लोकप्रिय हुई है। इस योजना के अंतर्गत गरीब महिलाओं को मुफ्त एलपीजी
गैस कनेक्शन दिए जाते हैं। इस कार्यक्रम ने गरीब महिलाओं को मिट्टी के चूल्हे से
आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। बताते हैं कि इस साल उत्तर प्रदेश
के चुनावों में पार्टी को मिली जीत के पीछे दूसरे कारणों के साथ-साथ उज्ज्वला
योजना की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी। ग्रामीण महिलाओं की रसोई में अब गैस के साथ-साथ
बिजली की रोशनी का और इंतजाम किया जा रहा है।
Sunday, September 24, 2017
ममता की अड़ियल राजनीति
बंगाल
में ममता बनर्जी की सरकार दुर्गापूजा और मुहर्रम साथ-साथ होने के कारण राजनीतिक
विवाद में फँस गई है। सरकार ने फैसला किया था कि साम्प्रदायिक टकराव रोकने के लिए
30 सितम्बर और 1 अक्तूबर को दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन नहीं होगा। इस फैसले का
विरोध होना ही था। यह विरोध केवल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी ने नहीं किया,
वाममोर्चा ने भी किया। आम मुसलमान की समझ से भी मुहर्रम और दुर्गा प्रतिमा विसर्जन
साथ-साथ होने में कोई दिक्कत नहीं थी। यह ममता बनर्जी का अति उत्साह था।
ममता
बनर्जी नहीं मानीं और मामला अदालत तक गया। कोलकाता हाईकोर्ट ने अब आदेश दिया है कि
सरकार को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि मुहर्रम के जुलूस भी निकलें और दुर्गा
प्रतिमाओं का विसर्जन भी हो। इस आदेश पर उत्तेजित होकर ममता बनर्जी ने कहा, मेरी
गर्दन काट सकते हैं, पर मुझे आदेश नहीं दे सकते। शुरू में लगता था कि वे हाईकोर्ट
के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगी। अंततः उन्हें बात समझ में आई और संकेत
मिल रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट जाने का इरादा उन्होंने छोड़ दिया है।
Sunday, September 17, 2017
राहुल का पुनरागमन
राहुल गांधी ने अपने पुनरागमन की सूचना अमेरिका के बर्कले विश्वविद्यालय से दी है। पुनरागमन इसलिए कि सन 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के वक्त उन्होंने भारतीय राजनीति में पूरी छलांग लगाई थी। पर उस चुनाव में वे विफल रहे। इसके बाद जनवरी 2013 में पार्टी के जयपुर चिंतन शिविर में उन्हें एक तरह से पार्टी की बागडोर पूरी तरह सौंप दी गई, जिसकी पूर्णाहुति 2014 की ऐतिहासिक पराजय में हुई। उसके बाद से उनका मेक-ओवर चल रहा है।
राहुल ने जिस मौके पर पार्टी के नेतृत्व की जिम्मेदारी हाथ में लेने का निश्चय किया है, वह बहुत अच्छा नहीं है। उनकी पहचान चुनाव जिताऊ नेता की नहीं है। हालांकि उन्होंने टेक्स्ट बुक स्टाइल में राजनीति की शुरुआत की थी, पर उनका पहला राउंड पूरी तरह विफल रहा है। अगले दौर में वे किस तरह सामने आएंगे, यह अभी स्पष्ट नहीं है।
राहुल ने जिस मौके पर पार्टी के नेतृत्व की जिम्मेदारी हाथ में लेने का निश्चय किया है, वह बहुत अच्छा नहीं है। उनकी पहचान चुनाव जिताऊ नेता की नहीं है। हालांकि उन्होंने टेक्स्ट बुक स्टाइल में राजनीति की शुरुआत की थी, पर उनका पहला राउंड पूरी तरह विफल रहा है। अगले दौर में वे किस तरह सामने आएंगे, यह अभी स्पष्ट नहीं है।
Sunday, September 10, 2017
एक्टिविज्म और पत्रकारिता का द्वंद्व
गौरी लंकेश की हत्या ने देश के वैचारिक परिदृश्य में हलचल मचा दी है। इस हत्या की भर्त्सना ज्यादातर पत्रकारों, उनकी संस्थाओं, कांग्रेस-बीजेपी समेत ज्यादातर राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने की है। यह मुख्यधारा के मीडिया का सौम्य पक्ष है। पर सोशल मीडिया में गदर मचा पड़ा है। तलवारें-कटारें खुलकर चल रहीं हैं। कई किस्म के गुबार फूट रहे हैं। हत्या के फौरन बाद दो अंतर्विरोधी प्रतिक्रियाएं प्रकट हुईं हैं। हत्या किसने की और क्यों की, इसका इंतजार किए बगैर एक तबके ने मोदी सरकार पर आरोपों की झड़ी लगा दी। दूसरी ओर कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर अभद्र और अश्लील तरीके से इस हत्या पर खुशी जाहिर की है।
चिंता
की बात है कि विचार अभिव्यक्ति के कारण किसी की हत्या कर दी गई। पर यह पहले
पत्रकार की हत्या नहीं है। वस्तुतः पत्रकारों की हत्या को हम महत्व देते ही नहीं
हैं। इस वक्त की तीखी प्रतिक्रिया इसके राजनीतिक निहितार्थ के कारण है। हाल में हमारी
पत्रकारिता पर दो किस्म के खतरे पैदा हुए हैं। पहला, जान का खतरा और दूसरा
पत्रकारों का धड़ों में बदलते जाना। इसे भी खतरा मानिए। संदेह अलंकार का उदाहरण देते
हुए कहा जाता है ‘...कि सारी ही
की नारी है, कि नारी ही की सारी है।’ पत्रकारों की एक्टिविस्ट के रूप में और
एक्टिविस्ट की पत्रकारों के रूप में भूमिका की अदला-बदली हो रही है।
Sunday, September 3, 2017
अर्थव्यवस्था और उसके राजनीतिक जोखिम
एकसाथ आई दो खबरों से ऐसा लगने लगा है कि अर्थव्यवस्था चौपट हो रही है और
विकास के मोर्चे पर सरकार फेल हो रही है। इस मामले के राजनीतिक निहितार्थ हैं,
इसलिए शोर कुछ ज्यादा है। इस शोर की वजह से हम मंदी की ओर बढ़ती अर्थव्यवस्था के
कारणों पर ध्यान देने के बजाय उसके राजनीतिक निहितार्थ पर ज्यादा ध्यान दे रहे
हैं। कांग्रेस समेत ज्यादातर विरोधी दल नोटबंदी के फैसले को निशाना बना रहे हैं। इस
मामले की राजनीति और अर्थनीति को अलग करके देखना मुश्किल है, पर उसे अलग-अलग करके
पढ़ने की कोशिश करनी चाहिए।
बुनियादी रूप से केंद्र सरकार ने कुछ फैसले करके जो जोखिम मोल लिया है,
उसका सामना भी उसे करना है। बल्कि अपने फैसलों को तार्किक परिणति तक पहुँचाना
होगा। अलबत्ता सरकार को शाब्दिक बाजीगरी के बजाय साफ और खरी बातें कहनी चाहिए। जिस
वक्त नोटबंदी हुई थी तभी सरकार ने माना था कि इस फैसले का असर अर्थव्यवस्था पर
पड़ेगा, पर यह छोटी अवधि का होगा। इन दिनों हम जीडीपी में गिरावट के जिन आँकड़ों
पर चर्चा कर रहे हैं, वे नोटबंदी के बाद की दूसरी तिहाई से वास्ता रखते हैं। हो
सकता है कि अगली तिहाई में भी गिरावट हो, पर यह ज्यादा लंबी नहीं चलेगी।
Sunday, August 27, 2017
‘बाबा संस्कृति’ का विद्रूप
बाबा
रामपाल, आसाराम बापू और अब गुरमीत राम रहीम के जेल जाने के बाद भारत की बाबा
संस्कृति को लेकर बुनियादी सवाल एकबार फिर उठे हैं। क्या बात है, जो हमें बाबाओं
की शरण में ले जाती है? और क्या बात
है जो बाबाओं और संतों को सांसारिक ऐशो-आराम और उससे भी ज्यादा अपराधों की ओर ले
जाती है? उनके रुतबे-रसूख का
आलम यह होता है कि राजनीतिक दल उनकी आरती उतारने लगे हैं।
जैसी हिंसा राम रहीम समर्थकों ने की है तकरीबन वैसी ही
हिंसा पिछले साल मथुरा के जवाहर बाग की सैकड़ों एकड़ सरकारी जमीन पर कब्जा जमाए
बैठे रामवृक्ष यादव और उनके हजारों समर्थकों और पुलिस के बीच हिंसक भिड़ंत में हुई
थी। उसमें 24 लोग मरे थे। रामवृक्ष यादव बाबा जय गुरदेव के अनुयायी थे।
राम रहीम हों, रामपाल या जय
गुरदेव बाबाओं के पीछे ज्यादातर ऐसी दलित-पिछड़ी जातियों के लोग होते हैं, जिन्हें
राजनीतिक प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया है। इनके तमाम मसले बाबा लोग निपटाते हैं, उन्हें सहारा देते हैं। बदले में फीस भी
लेते हैं. इनका प्रभाव उससे कहीं ज्यादा है, जितना सामने दिखाई पड़ता है। इनके दुर्ग बन
जाते हैं, जो अक्सर जमीन पर
कब्जा करके बनते हैं।
Sunday, August 20, 2017
युद्ध के नगाड़े क्यों बजा रहा है मीडिया?
एबीपी न्यूज़ पर रात
में एक कार्यक्रम आ रहा था कि भारत और चीन के बीच लड़ाई छिड़ी तो कौन सा देश किसके
साथ होगा। कार्यक्रम-प्रस्तोता ने अपने मन से और कुछ सामान्य समझ से दोनों देशों
के समर्थकों के नाम तय किए और सूची बनाकर पेश कर दी। इसी तरह जी न्यूज पर एक
कार्यक्रम चल रहा था, जिससे लगता था कि भारत और चीन के युद्ध की उलटी गिनती शुरू हो
गई है। क्या हिंदी या अंग्रेजी के ज्यादातर चैनलों की टीआरपी लड़ाई का नाम लेने से
बढ़ती है? क्या वजह है कि शाम को ज्यादातर चैनलों की सभाओं में
भारत और पाकिस्तान के तथाकथित विशेषज्ञ बैठकर एक-दूसरे को गाली देते रहते हैं? चैनल जान-बूझकर इसे
बढ़ावा देते हैं? सवाल है कि क्या दर्शक यही चाहता है?
चैनलों के इस जुनूनी व्यवहार के मुकाबले भारत सरकार का रुख काफी शांत और संयत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 15 अगस्त के भाषण में चीन और पाकिस्तान का नाम तक नहीं था। केवल कश्मीर के बारे में कुछ बातें थीं और एक जगह भारत की शक्ति के संदर्भ में सर्जिकल स्ट्राइक का जिक्र था। इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात सुषमा स्वराज ने हाल में राज्यसभा में कही। उन्होंने सपा नेता रामगोपाल यादव के युद्ध की तैयारी के बयान पर कहा कि युद्ध से समाधान नहीं निकलता। सेना को तैयार रखना होता है। धैर्य और भाषा-संयम और राजनयिक रास्तों से हल निकालने की कोशिश की जा रही है। आज सामरिक क्षमता बढ़ाने से ज्यादा अहम है आर्थिक क्षमता को बढ़ाना।
चैनलों के इस जुनूनी व्यवहार के मुकाबले भारत सरकार का रुख काफी शांत और संयत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 15 अगस्त के भाषण में चीन और पाकिस्तान का नाम तक नहीं था। केवल कश्मीर के बारे में कुछ बातें थीं और एक जगह भारत की शक्ति के संदर्भ में सर्जिकल स्ट्राइक का जिक्र था। इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात सुषमा स्वराज ने हाल में राज्यसभा में कही। उन्होंने सपा नेता रामगोपाल यादव के युद्ध की तैयारी के बयान पर कहा कि युद्ध से समाधान नहीं निकलता। सेना को तैयार रखना होता है। धैर्य और भाषा-संयम और राजनयिक रास्तों से हल निकालने की कोशिश की जा रही है। आज सामरिक क्षमता बढ़ाने से ज्यादा अहम है आर्थिक क्षमता को बढ़ाना।
Tuesday, August 15, 2017
स्मृतियों की नींव पर नए भारत का सपना
पाश की कविता है, ‘सबसे ख़तरनाक होता है/ हमारे सपनों का मर जाना।’ सपने तमाम तरह के होते हैं। भरमाने वाले,
उकसाने वाले और परेशान करने वाले। वे टूटते भी हैं। पर सपनों को होना चहिए। ऐसे
सपने जो हम सब मिलकर देखें।
अगस्त का यह महीना कुछ जबर्दस्त यादें साथ लेकर आता है।
स्वतंत्रता दिवस हमारे लिए महत्त्वपूर्ण याद है। पर यह हिरोशिमा और नगासाकी की
तबाही का महीना भी है। 6 अगस्त 1945 को जापान के हिरोशिमा शहर पर एटम बम गिराया
गया। फिर भी जापान ने हार नहीं मानी तो 9 अगस्त को नगासाकी शहर पर बम गिराया गया।
इन दो बमों ने विश्व युद्ध रोक दिया। दुनिया में इसके पहले इतने सारे लोगों की
एकसाथ मौत पहले कभी नहीं हुई थी। मीठी हों या खौफनाक, यादें को भुलाई नहीं जातीं।
उस बमबारी को बहत्तर साल हो गए हैं। हमारी आजादी से दो
साल ज्यादा। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से जापानी संविधान के अनुच्छेद 9 के तहत
व्यवस्था कर दी गई थी कि जापान भविष्य में युद्ध नहीं करेगा। पर अब जापान फिर से
इन कानूनों में बुनियादी बदलाव कर रहा है। वजह है कि वैश्विक राजनीति बदल रही है,
शक्ति संतुलन बदल रहा है। जापान को इस बात का श्रेय जाता है कि उसने द्वितीय विश्व
युद्ध की पराजय और विध्वंस का सामना करते हुए पिछले बहत्तर साल में एक नए देश की
रचना कर दी। वह आज भी दुनिया की तीसरे नम्बर की अर्थव्यवस्था है। भले ही चीन उससे
बड़ी अर्थव्यवस्था है, पर तकनीकी
गुणवत्ता में चीन अभी उसके करीब नहीं हैं। हमारे पास जापान से सीखने को बहुत कुछ
है।
Sunday, August 13, 2017
बीजेपी की अगस्त क्रांति
पिछले तीन साल में नरेंद्र मोदी सरकार न केवल कांग्रेस
के सामाजिक आधार को ध्वस्त किया है, बल्कि उसके लोकप्रिय मुहावरों को भी छीन लिया
है। गांधी और पटेल को वह पहले ही अंगीकार कर चुकी है। मोदी के स्वच्छ भारत अभियान
का प्रतीक चिह्न गांधी का गोल चश्मा है। गांधी के सत्याग्रह के तर्ज पर मोदी ने ‘स्वच्छाग्रह’ शब्द का इस्तेमाल किया। सरदार वल्लभ भाई
पटेल को वे पहले ही अपना चुके हैं। इस साल 9 अगस्त क्रांति दिवस ‘संकल्प दिवस’ के रूप में मनाने का आह्वान करके मोदी ने
कांग्रेस की एक और पहल को छीन लिया।
अगस्त क्रांति के 75 साल पूरे होने पर बीजेपी सरकार ने
जिस स्तर का आयोजन किया, उसकी उम्मीद कांग्रेस पार्टी ने नहीं की होगी। मोदी ने
1942 से 1947 को ही नहीं जोड़ा है, 2017 से 2022 को भी जोड़ दिया है। यानी मोदी
सरकार की योजनाएं 2019 के आगे जा रही हैं। भारत छोड़ो आंदोलन की याद में संसद में
आयोजित विशेष बैठक में मोदी ने जिन रूपकों का इस्तेमाल किया, उनसे उन्होंने
सामान्य जन-भावना को जीतने की कोशिश की। दूसरी ओर सोनिया गांधी ने उस आंदोलन को
कांग्रेस पार्टी के आंदोलन के रूप में ही रेखांकित करने की कोशिश की। साथ ही उन्होंने
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर भी वार किया। इससे उन्हें वांछित लाभ मिला या नहीं,
कहना मुश्किल है। बेहतर होता कि वे ऐसे मौके को राष्ट्रीय पर्व तक सीमित रहने
देतीं।
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