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Sunday, June 19, 2016

बहुत देर कर दी हुज़ूर आते-आते

 दिल्ली के सियासी हलकों में खबर गर्म है कि कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री पद की प्रत्याशी के रूप में पेश कर सकती हैं। शुक्रवार को उनकी सोनिया गांधी के साथ मुलाकात के बाद इस सम्भावना को और बल मिला है। इसमें असम्भव कुछ नहीं। शीला दीक्षित कांग्रेस के पास बेहतरीन सौम्य और विश्वस्त चेहरा है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को जैसा चेहरा चाहिए वैसा ही। गुलाम नबी आजाद को उत्तर प्रदेश का गुलाम प्रभारी बनाना पार्टी का सूझबूझ भरा कदम है।

कांग्रेस का आखिरी दाँव

कांग्रेस के पास अब कोई विकल्प नहीं है। राहुल गांधी की सफलता या विफलता  भविष्य की बात है, पर उन्हें अध्यक्ष बनाने के अलावा पार्टी के पास कोई रास्ता नहीं बचा। सात साल से ज्यादा समय से पार्टी उनके नाम की माला जप रही है। अब जितनी देरी होगी उतना ही पार्टी का नुकसान होगा। हाल के चुनावों में असम और केरल हाथ से निकल जाने के बाद डबल नेतृत्व से चमत्कार की उम्मीद करना बेकार है। सोनिया गांधी अनिश्चित काल तक कमान नहीं सम्हाल पाएंगी। राहुल गांधी के पास पूरी कमान होनी ही चाहिए।

राहुल के अध्यक्ष बनने के बाद अब प्रियंका गांधी को लाने की माँग भी नहीं उठेगी। शक्ति के दो केन्द्रों का संशय नहीं होगा। कांग्रेस अब बाउंसबैक करे तो श्रेय राहुल को और डूबी तो उनका ही नाम होगा। हालांकि कांग्रेस की परम्परा है कि विजय का श्रेय नेतृत्व को मिलता है और पराजय की आँच उसपर पड़ने से रोकी जाती है। सन 2009 की जीत का श्रेय मनमोहन सिंह के बजाय राहुल को दिया गया और 2014 की पराजय की जिम्मेदारी सरकार पर डाली गई।

Friday, June 3, 2016

कई पहेलियों का हल निकालना होगा राहुल को

कांग्रेस पार्टी की जिम्मेदारी अब राहुल गांधी के कंधों पर पूरी तरह आने वाली है. एक तरह से यह मौका है जब राहुल अपनी काबिलीयत साबित कर सकते हैं. पार्टी लगातार गिरावट ढलान पर है. वे इस गिरावट को रोकने में कामयाब हुए तो उनकी कामयाबी होगी. वे कामयाब हों या न हों, यह बदलाव होना ही था. फिलहाल इससे दो-तीन बातें होंगी. सबसे बड़ी बात कि अनिश्चय खत्म होगा. जनवरी 2013 के जयपुर चिंतन शिविर में उन्हें पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया गया था, तब यह बात साफ थी कि वे वास्तविक अध्यक्ष हैं. पर व्यावहारिक रूप से पार्टी के दो नेता हो गए. उसके कारण पैदा होने वाला भ्रम अब खत्म हो जाएगा.

Sunday, May 22, 2016

और कितनी फज़ीहत लिखी है कांग्रेस की किस्मत में?

पांच राज्यों के चुनाव नतीजे आने के बाद कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने अपने एक ट्वीट में कहा कि बड़ी सर्जरी की जरूरत है। उन्होंने कहीं यह भी कहा कि गांधी परिवार की वंशज प्रियंका गांधी के राजनीति में आने से कांग्रेसजन को बेहद खुशी होगी। उनमें जननेता के तौर पर उभरने की क्षमता है। अखबारों में उनका यह बयान भी छपा है कि ये चुनाव परिणाम पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व की विफलता को परिलक्षित नहीं करते। तीनों बातें अंतर्विरोधी हैं। तीनों को एकसाथ मिलाकर पढ़ें तो लगता है कि पार्टी के अंतर्विरोधों के खुलने की घड़ी आ रही है। नए और पुराने नेतृत्व का टकराव नजर आने लगा है। समय रहते इसे सँभाला नहीं गया तो असंतोष खुलकर सामने आएगा।

Saturday, May 14, 2016

कांग्रेसी छतरी में छेद

सन 2014 की ऐतिहासिक पराजय के दो साल अगले हफ्ते पूरे होने जा रहे हैं। इन दो साल में पार्टी ढलान पर उतरती ही गई है। गुजरे दो साल में एक भी घटना ऐसी नहीं हुई, जिससे पार्टी की पराजित आँखों में रोशनी दिखाई पड़ी हो। पिछले दो साल में हुए चुनावों में उसे कहीं सफलता नहीं मिली। बिहार विधानसभा में उसकी स्थिति बेहतर जरूर हुई है, पर दूसरों के सहारे। उसके पीछे कांग्रेस की रणनीति नहीं थी। फिलहाल अकेले दम पर जीतने की कोई योजना उसके पास नहीं है। अब वह उत्तर भारत में गठबंधनों के सहारे वैतरणी पार करना चाहती है।

Wednesday, May 4, 2016

कैसे होगा कांग्रेस का ‘बाउंसबैक?’

कितना कठिन है कांग्रेस की वापसी का रास्ता


सोनिया, राहुल गांधीImage copyrightReuters
बीजेपी की विजय के पिछले दो साल कांग्रेस की पराजय के साल भी रहे हैं. अगस्ता वेस्टलैंड मामले को लेकर बीजेपी ने कांग्रेस को अपनी पकड़ में ले रखा है. कांग्रेस पलटवार करती भी है, पर अभी तक उसकी वापसी के आसार नजर नहीं आते हैं.
लोकसभा चुनाव में हार के बाद कार्यसमिति की बैठक में कहा गया था कि पार्टी के सामने इससे पहले भी चुनौतियाँ आई हैं और उसका पुनरोदय हुआ है. वह ‘बाउंसबैक’ करेगी. पर कैसे और कब?
देखना चाहिए कि पार्टी ने पिछले दो साल में ऐसा क्या किया, जिससे लगे कि उसकी वापसी होगी. या अगले तीन साल में वह ऐसा क्या करेगी, जिससे उसका संकल्प पूरा होता नज़र आए.
इस महीने पांच विधानसभाओं के चुनाव परिणाम कांग्रेस की दशा और दिशा को जाहिर करेंगे. खासतौर से असम, बंगाल और केरल में उसकी बड़ी परीक्षा है. ये परिणाम भविष्य का संदेश देंगे.
सोनिया, राहुल गांधीImage copyrightReuters
कांग्रेस इतिहास के सबसे नाज़ुक दौर में है. दस से ज्यादा राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों से लोकसभा में उसका कोई प्रतिनिधि नहीं है. जनता से यह विलगाव कुछ साल और चला तो मुश्किल पैदा हो जाएगी.
तकरीबन आठ साल के बनवास के बाद कांग्रेस की 2004 में सत्ता में वापसी हुई थी. तभी वामपंथी दलों से उसके सहयोग का एक प्रयोग शुरू हुआ था, जो 2008 में टूट गया. उसके बनने और टूटने के पीछे कांग्रेस से ज्यादा सीपीएम के राजनीतिक चिंतन की भूमिका थी.
2004 में सीपीएम के महासचिव हरकिशन सिंह सुरजीत थे. अप्रैल 2005 में प्रकाश करात ने इस पद को संभाला और वे अप्रैल 2015 तक अपने पद पर रहे. उनके दौर में कांग्रेस और वामदलों के रिश्तों की गर्माहट कम हो गई थी.
कम्युनिस्ट पार्टियों में व्यक्तिगत नेतृत्व खास मायने नहीं रखता, लेकिन कांग्रेस को लेकर सीपीआई-सीपीएम नेतृत्व की भूमिका की अनदेखी भी नहीं की जा सकती. इस साल पहली बार कांग्रेस और वाम दल बंगाल में चुनाव-पूर्व गठबंधन के साथ उतरे हैं.
यह गठबंधन केरल में नहीं है, जो अंतर्विरोध को बताता है. लेकिन राजनीतिक धरातल पर कांग्रेस का झुकाव वामदलों की ओर है. बीजेपी की काट उसे वामपंथी नीतियों में दिखाई पड़ती है.

Sunday, April 3, 2016

कांग्रेस पर खतरे का निशान

संसद के बजट सत्र का आधिकारिक रूप से सत्रावसान हो गया है। ऐसा उत्तराखंड में पैदा हुई असाधारण स्थितियों के कारण हुआ है। उत्तराखंड में राजनीतिक स्थितियाँ क्या शक्ल लेंगी, यह अगले हफ्ते पता लगेगा। उधर पाँच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव कल असम में मतदान के साथ शुरू हो रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों की राजनीति की रीति-नीति को ये चुनाव तय करेंगे। उत्तराखंड के घटनाक्रम और पाँच राज्यों के चुनाव का सबसे बड़ा असर कांग्रेस पार्टी के भविष्य पर पड़ने वाला है। असम और केरल में कांग्रेस की सरकारें हैं। बंगाल में कांग्रेस वामपंथी दलों के साथ गठबंधन करके एक नया प्रयोग कर रही है और तमिलनाडु में वह डीएमके के साथ अपने परम्परागत गठबंधन को आगे बढ़ाना चाहती है, पर उसमें सफलता मिलती नजर नहीं आती।

केरल में मुख्यमंत्री ऊमन चैंडी समेत चार मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के सीधे आरोप हैं। मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के बीच चुनाव को लेकर मतभेद हैं। पार्टी की पराजय सिर पर खड़ी नजर आती है। अरुणाचल गया, उत्तराखंड में बगावत हो गई। मणिपुर में पार्टी के 48 में से 25 विधायकों ने मुख्यमंत्री ओकरम इबोबी सिंह के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद कर दिया है। कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के खिलाफ बगावत का माहौल बन रहा है।

Sunday, December 13, 2015

उल्टी भी पड़ सकती है कांग्रेसी आक्रामकता


सन 2014 के चुनाव में भारी पराजय के बाद कांग्रेस के सामने मुख्यधारा में फिर से वापस आने की चुनौती है। जिस तरह सन 1977 की पराजय के बाद इंदिरा गांधी ने अपनी वापसी की थी। पार्टी उसी लाइन पर भारतीय जनता पार्टी को लगातार दबाव में लाने की कोशिश कर रही है। पार्टी की इसी छापामार राजनीति का नमूना संसद के मॉनसून सत्र में देखने को मिला. संयोग से उसके बाद बिहार में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी को उम्मीद से ज्यादा सीटें मिलीं। इस दौरान राहुल गांधी के तेवरों में भी तेजी आई है।

संसद के इस सत्र में भी कांग्रेस मोल-भाव की मुद्रा में है। पिछले हफ्ते दिल्ली हाईकोर्ट ने नेशनल हैरल्ड के मामले में जो फैसला सुनाया है, उसने राष्ट्रीय राजनीति का ध्यान खींचा है। सहज भाव से कांग्रेस पहले रोज से ही इस मामले में बजाय रक्षात्मक होने के आक्रामक है। देखना होगा कि क्या पार्टी इस आक्रामकता को बरकरार रख सकती है। क्या सन 2016 के विधानसभा चुनावों में पार्टी को कमोबेश सफलता मिलेगी?


पहली नजर में हैरल्ड मामले में कांग्रेस पार्टी की प्रतिक्रिया न तो संतुलित है और न सुविचारित। इसके कानूनी और राजनीतिक पहलुओं पर सोचे समझे बगैर पार्टी ने पहले दिन से जो रुख अपनाया है, वह कांग्रेस के पुराने दिनों की याद दिलाता है, जब इंदिरा गांधी के खिलाफ तनिक सी बात सामने आने पर भी देशभर में रैलियाँ होने लगती थीं। पार्टी को गलतफहमी है कि संसद से सड़क तक हंगामा करने से उसकी वापसी हो जाएगी। पार्टी का अदालती प्रक्रिया को लेकर रवैया खतरनाक है। देश भूला नहीं है कि सन 1975 का आपातकाल इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के कारण लागू हुआ था। संयोग से सोनिया गांधी ने ‘इंदिरा की बहू हूँ’ कहकर उसकी पुष्टि भी कर दी। यह एक सामान्य मामला है तो उन्हें अदालत में दोषी ठहराया ही नहीं जा सकता। जब वे दोषी हैं नहीं तो कोई उनको फँसा कैसे देगा?

Sunday, November 1, 2015

हाशिए पर जाने वाली है कांग्रेस

बिहार में चुनाव अब अंतिम दौर में है। परिणाम चाहे जो हो, उसका राष्ट्रीय राजनीति पर गहरा असर होने वाला है। भारतीय जनता पार्टी के भीतर नेतृत्व को लेकर असमंजस और भाजपा-विरोधी राष्ट्रीय गठबंधन की सम्भावनाएं इस पार या उस पार लगेंगी। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल सामने आ रहे हैं। ममता बनर्जी ने समर्थन किया ही है। उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। महागठबंधन जीता तो श्रेय किसे मिलेगा? कांग्रेस को, राहुल गांधी को या लालू और नीतीश को? बिहार से आश्चर्यजनक खबरें मिल रहीं हैं कि कांग्रेसी प्रत्याशी लालू-नीतीश की मदद चाहते हैं सोनिया-राहुल की नहीं। परिणाम आने के बाद लालू-नीतीश को अफसोस होगा कि कांग्रेस को इतनी सीटें दी ही क्यों थीं। इस परिणाम की गूँज संसद के शीत सत्र में भी सुनाई पड़ेगी।  जीएसटी, भूमि अधिग्रहण तथा आर्थिक उदारीकरण से जुड़े कानूनों की दिशा का पता भी इससे लगेगा। जब तक राज्यसभा में कांग्रेस की उपस्थिति है वह खबरों में रहेगी, पर उसके बाद?

Wednesday, July 29, 2015

‘राजनीति’ फिर वापस पटरी पर आएगी इस ब्रेक के बाद

‘राजनीति’ वापस आएगी इस ब्रेक के बाद

  • 2 घंटे पहले
कलाम श्रद्धांजलि
पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, याक़ूब मेमन और पंजाब के गुरदासपुर के एक थाने पर हुए हमले के कारण मीडिया का ध्यान कुछ देर के लिए बंट गया.
इस वजह से मुख्यधारा की राजनीति कुछ देर के लिए ख़ामोश है.
दो-तीन रोज़ में जब सन्नाटा टूटेगा तब हो सकता है कि मसले और मुद्दे बदले हुए हों, पर तौर-तरीक़े वही होंगे.

मॉनसून सत्र का हंगामा

हंगामा, गहमागहमी और शोर हमारी राजनीति के दिल-ओ-दिमाग़ में है.
एक धारणा है कि इसमें संजीदगी, समझदारी और तार्किकता कभी थी भी नहीं. पर जैसा शोर, हंगामा और अराजकता आज है, वैसी पहले नहीं था.
क्या इसे राजनीति और मीडिया के ‘ग्रास रूट’ तक जाने का संकेतक मानें?
लोकसभा, मानसून सत्र
शोर, विरोध और प्रदर्शन को ही राजनीति मानें? क्या हमारी सामाजिक संरचना में अराजकता और विरोध ताने-बाने की तरह गुंथे हुए हैं?
संसद के मॉनसून सत्र के शुरुआती दिनों में अनेक सदस्य हाथों में पोस्टर-प्लेकार्ड थामे टीवी कैमरा के सामने आने की कोशिश करते रहे.
कैमरा उनकी अनदेखी कर रहा था, इसलिए उन्होंने स्पीकर के आसपास मंडराना शुरू किया या जिन सदस्यों को बोलने का मौक़ा दिया गया उनके सामने जाकर पोस्टर लगाए ताकि टीवी दर्शक उन्हें देखें.
हमने मान लिया है कि संसद में हंगामा राजनीतिक विरोध का तरीक़ा है और यह हमारे देश की परम्परा है. इसलिए लोकसभा टीवी को इसे दिखाना भी चाहिए.
लोकतांत्रिक विरोध को न दिखाना अलोकतांत्रिक है.
पिछले हफ़्ते कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा था कि लोकसभा में कैमरे विपक्ष का विरोध नहीं दिखा रहे हैं. सिर्फ़ सत्तापक्ष को ही कैमरों में दिखाया जा रहा है.
उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि मोदी सरकार विपक्ष की आवाज़ दबा देना चाहती है.

मेरा बनाम तेरा भ्रष्टाचार

अधीर रंजन, लोकसभा, मानसून सत्र
कांग्रेस की प्रतिज्ञा है कि जब तक सरकार भ्रष्टाचार के आरोप से घिरे नेताओं को नहीं हटाएगी, तब तक संसद नहीं चलेगी.

Thursday, July 23, 2015

अगले चार साल में क्या करेगी कांग्रेस?

पिछले कुछ महीनों से कांग्रेस पार्टी के आक्रामक तेवर और विपक्षी दलों के साथ उसके बेहतर तालमेल के कारण भारतीय राजनीति में बदलाव का संकेत मिल रहा है. पिछले एक साल में नरेंद्र मोदी की सरकार की लोकप्रियता में गिरावट के संकेत मिल रहे हैं.
बीजेपी सरकार की रीति-नीति के अलावा कांग्रेस की बढ़ती आक्रामकता भी इस गिरावट का कारण है. पर यह आभासी राजनीति है. इसे राजनीतिक यथार्थ यानी चुनावी सफलता में तब्दील होना चाहिए. क्या अगले कुछ वर्षों में यह पार्टी कोई बड़ी सफलता हासिल कर सकती है?
कैसे होगा बाउंसबैक?

फिलहाल कांग्रेस इतिहास के सबसे नाज़ुक दौर में है. देश के दस से ज्यादा राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों से लोकसभा में उसका कोई प्रतिनिधि नहीं है. सन 1967, 1977, 1989, 1991 और 1996 के साल कांग्रेस की चुनावी लोकप्रिय में गिरावट के महत्वपूर्ण पड़ाव थे. पर 2014 में उसे अब तक की सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा.

Sunday, July 19, 2015

‘डायपर-छवि’ से क्या बाहर आ पाएंगे राहुल?

भारतीय राजनीति में इफ्तार पार्टी महत्वपूर्ण राजनीतिक गतिविधि के रूप में अपनी जगह बना चुकी है। इस लिहाज से सोनिया गांधी की इफ्तार पार्टी में मुलायम सिंह और लालू यादव का न जाना और राष्ट्रपति की इफ्तार पार्टी में नरेंद्र मोदी का न जाना बड़ी खबरें हैं। बनते-बिगड़ते रिश्तों और गोलबंदियों की झलक पिछले हफ्ते देखने को मिली। पर शुक्रवार को राहुल गांधी के नरेंद्र मोदी पर वार और भाजपा के पलटवार से अगले हफ्ते की राजनीति का आलम समझ में आने लगा है। साफ है कि कांग्रेस अबकी बार भाजपा पर पूरे वेग से प्रहार करेगी। पर अप्रत्याशित रूप से सरकार ने भी कांग्रेस पर भरपूर ताकत से पलटवार का फैसला किया है। इस लिहाज से संसद का यह सत्र रोचक होने वाला है।

Sunday, June 21, 2015

कितना खिंचेगा ‘छोटा मोदी’ प्रकरण?

ललित मोदी प्रकरण ने कांग्रेस पार्टी और भारतीय जनता पार्टी को अपनी राजनीति ताकत आजमाने का एक मौका दिया है। मोदी को पहली बार इन हालात से गुजरने का मौका मिला है, इसलिए पहले हफ्ते में कुछ अटपटे प्रसंगों के बाद पार्टी संगठन, सरकार और संघ तीनों की एकता कायम हो गई है। कांग्रेस के लिए यह मुँह माँगी मुराद थी, जिसका लाभ उसे तभी मिला माना जाएगा, जब या तो वह राजनीतिक स्तर पर इससे कुछ हासिल करे या संगठन स्तर पर। उसकी सफलता फिलहाल केवल इतनी बात पर निर्भर करेगी कि वह कितने समय तक इस प्रकरण से खेलती रहेगी। राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने गुरुवार को कहा कि अगर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया तो नरेंद्र मोदी के लिए संसद का सामना करना ‘नामुमकिन’ होगा। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी ने भी तकरीबन इसी आशय का वक्तव्य दिया है।

Sunday, April 19, 2015

वापस लौटे 'नमो' और 'रागा' की चुनौतियाँ

पिछले हफ्ते दो महत्वपूर्ण नेताओं की घर वापसी हुई है। नरेंद्र मोदी यूरोप और कनाडा यात्रा से वापस आए हैं और राहुल गांधी तकरीबन दो महीने के अज्ञातवास के बाद। दोनों यात्राओं में किसी किस्म का साम्य नहीं है और न दोनों का एजेंडा एक था। पर दोनों देश की राजनीति के एक महत्वपूर्ण पड़ाव पर वापस घर आए हैं। नरेंद्र मोदी देश की वैश्विक पहचान के अभियान में जुटे हैं। उनके इस अभियान के दो पड़ाव चीन और रूस अभी और हैं जो इस साल पूरे होंगे। पर उसके पहले अगले हफ्ते देश की संसद में उन्हें एक महत्वपूर्ण अभियान को पूरा करना है। वह है भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को संसद से पास कराना। उनके मुकाबले राहुल गांधी हैं जिनका लक्ष्य है इस अध्यादेश को पास होने से रोकना। आज वे दिल्ली के रामलीला मैदान में किसानों की रैली का नेतृत्व करके इस अभियान का ताकतवर आग़ाज़ करने वाले हैं। दो विपरीत ताकतें एक-दूसरे के सामने खड़ी हैं।

Saturday, March 28, 2015

कांग्रेस का ‘मेक-ओवर’ मंत्र

दो महीने बाद जब नरेंद्र मोदी सरकार एक साल पूरा करेगी तब कांग्रेस पार्टी की विपक्ष के रूप में भूमिका का एक साल भी पूरा होगा। उस वक्त दोनों भूमिकाओं की तुलना करने का मौका भी होगा। फिलहाल कांग्रेस मेक-ओवर मोड में है। वह अपनी शक्लो-सूरत बदल रही है। सबसे ताजा उदाहरण है उसके प्रवक्ताओं और मीडिया पैनलिस्ट की सूची, जिसमें भारी संख्या में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बाल-बच्चे शामिल हैं। युवा और वैल कनेक्टेड शहरी। साथ में राहुल गांधी के करीबी। पार्टी के मेक-ओवर का यह नया मंत्र है। और राजनीतिक दर्शन माने फॉर्मूला है किसान, गाँव और गरीब। देश की ज्यादातर पार्टियों का सक्सेस मंत्र यही है।

Wednesday, March 25, 2015

कांग्रेस का मीडिया मेकओवर

कांग्रेस ने मंगलवार 25 मार्च को 21 पार्टी प्रवक्ताओं की नई सूची जारी की। इनमें 17 प्रवक्ता और 4 सीनियर प्रवक्ता हैं। इसके अलावा 31 लोगों को मीडिया और टीवी चैनलों के पैनल में कोऑर्डिनेट करने की जिम्मेदारी दी गई है। पूर्व प्रवक्ता अजय माकन को सीनियर प्रवक्ता बनाए रखा है। मीडिया पैनलिस्ट में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी को शामिल किया गया है। वह टीवी चैनलों पर कांग्रेस का पक्ष रखेंगी। पार्टी ने हाल में रणदीप सुरजेवाला को अपने जनसम्पर्क विभाग का प्रमुख बनाया है। पार्टी की योजना अब बड़े स्तर पर जनसम्पर्क अभियान चलाने की है। इस टीम में मीडिया पैनेलिस्टों को छांटने में खासी मशक्कत की गई लगती है।

इतनी भारी-भरकम प्रवक्ता टीम पहली बार घोषित की गई है। इसमें बड़ी संख्या में राहुल गांधी के करीबी लोग शामिल हैं। इनकी औसत उम्र 40 साल है। टीम में दो महत्वपूर्ण नाम नहीं दिखाई पड़े। पहला नाम है जयराम रमेश का और दूसरा शशि थरूर का। शशि थरूर कई कारणों से विवादास्पद हो गए थे, पर जयराम रमेश तो अच्छे प्रवक्ता माने जाते रहे हैं। लगता है वे किसी और महत्वपूर्ण काम को सम्हालने जा रहे हैं। एक और महत्वपूर्ण नाम राशिद अल्वी का है जो इस सूची में नहीं है। सूची को देखने पर यह भी नजर आता है कि पार्टी अपने मेकओवर में प्रवक्ताओं को महत्व दे रही है। जितने संगठित तरीके से यह टीम घोषित की गई है यह पार्टी के इतिहास में पहली बार होता लगता है।

इन नामों पर गौर करें तो काफी बड़ी संख्या युवाओं की है, पर वरिष्ठ और अनुभवी नेता भी इनमें शामिल हैं। वरिष्ठ नेताओं की संतानों को भी इनमें जगह दी गई है। मसलन दीपेंद्र हुड्डा, आरपीएन सिंह, शर्मिष्ठा मुखर्जी, सलमान सोज़, परिणीति शिंदे, सुष्मिता देव, अमित देशमुख, रश्मिकांत, गौरव गोगोई वगैरह।

अजय माकन, सीपी जोशी, सत्यव्रत चतुर्वेदी और शकील अहमद को सीनियर प्रवक्ता के तौर पर शामिल किया है। इसके अलावा पार्टी के सीनियर प्रवक्ताओं में आनंद शर्मा, गुलाम नबी आजाद, मुकुल वासनिक, पी चिदंबरम और सलमान खुर्शीद पहले से ही शामिल हैं। इस सूची के घोषित होने के बाद मीडिया को अभी यह बताने वाला कोई नहीं है कि राहुल गांधी कहाँ हैं और कब आने वाले हैं।

यह है पूरी लिस्ट

सीनियर प्रवक्ता- आनंद शर्मा, गुलाम नबी आजाद, मुकुल वासनिक, पी चिदंबरम, सलमान खुर्शीद,अजय माकन, सीपी जोशी, सत्यव्रत चतुर्वेदी, शकील अहमद।

प्रवक्ता- अभिषेक सिंघवी, अजय कुमार, ज्योतिरादित्य सिंधिया, पी सी चाको, राज बब्बर, रीता बहुगुणा जोशी, संदीप दीक्षित, संजय झा, शक्ति सिंह गोहिल और शोभा ओझा की मौजूदा टीम के अतिरिक्त पार्टी प्रवक्ता होंगे भक्त चरणदास, दीपेंद्र हुड्डा, दिनेश गुंडूराव, गौरव गोगोई, खुशबू सुंदर, मधु गौड़, मीम अफजल, प्रियंका चतुर्वेदी, पीएल पुनिया, राजीव गौड़ा, राजीव सत्व, रजनी पाटिल, आरपीएन सिंह, सुष्मिता देव, टॉम वडक्कन, विजेंद्र सिंगला।

मीडिया पैनलिस्ट- अखिलेश प्रताप सिंह, आलोक शर्मा, एमी याग्निक, अमित देशमुख, अनंत गाडगिल, अशोक तंवर, बालचंद्र मुंगेरकर, ब्रजेश कलप्पा, चंदन यादव, चरण सिंह सापरा, सीआर केशवन, देवव्रत सिंह, हुसैन दलवी, जगवीर शेरगिल, जीतू पटवारी, मनीष तिवारी, मुकेश नायक, नदीम जावेद, नासिर हुसैन, प्रेमचंद मिश्रा, परणीति शिंदे, रागिनी नायक, राजीव शुक्ला, रंजीता रंजन, रश्मिकांत, सलमान सोज, संदीप चौधरी, संजय निरुपम, शर्मिष्ठा मुखर्जी, डॉ विष्णु।


Friday, March 20, 2015

क्या ‘मोदी मैजिक’ को तोड़ सकती है कांग्रेस?

सोनिया गांधी ‘सेक्युलर’ ताकतों को एक साथ लाने में कामयाब हुईं हैं. पिछले साल लोकसभा चुनाव के पहले इस किस्म का गठजोड़ बनाने की कोशिश हुई थी, पर उसका लाभ नहीं मिला. राज्यों के विधानसभा चुनावों में इसकी कोशिश नहीं हुई. केवल उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान के उपचुनावों में इसका लाभ मिला. उसके बाद दिल्ली के विधानसभा चुनाव में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप में यह एकता दिखाई दी. निष्कर्ष यह है कि जहाँ मुकाबला सीधा है वहाँ यदि एकता कायम हुई तो मोदी मैजिक नहीं चलेगा.

क्या इस कांग्रेस भाजपा विरोधी मोर्चे का नेतृत्व कांग्रेस करेगी? पिछले हफ्ते की गतिविधियों के आधार पर यह निष्कर्ष निकालने की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए. भूमि अधिग्रहण विधेयक को लेकर सोनिया गांधी के नेतृत्व में 14 पार्टियों के नेतृत्व में राष्ट्रपति भवन तक हुआ मार्च कई मानों में प्रभावशाली था, पर इसमें विपक्ष की तीन महत्वपूर्ण पार्टियाँ शामिल नहीं थीं. संयोग है कि तीनों विपक्ष की सबसे ताकतवर पार्टियाँ हैं. अन्नाद्रमुक, बीजू जनता दल और बसपा की अनुपस्थिति को भी समझने की जरूरत है. कह सकते हैं कि मोदी-रथ ढलान पर उतरने लगा है, पर अभी इस बात की परीक्षा होनी है. और अगला परीक्षण स्थल है बिहार.

Tuesday, December 30, 2014

‘छवि’ की राजनीति से घिरी कांग्रेस

कांग्रेस के लिए आने वाला साल चुनौतियों से भरा है। चुनौतियाँ बचे-खुचे राज्यों में इज्जत बचाए रखने और अपने संगठनात्मक चुनावों को सम्पन्न कराने की हैं। साथ ही पार्टी के भीतर सम्भावित बगावतों से निपटने की भी। पर उससे बड़ी चुनौती पार्टी के वैचारिक आधार को बचाए रखने की है। इस हफ्ते अचानक खबर आई कि राहुल गांधी ने पार्टी के महासचिवों से कहा है कि वे कार्यकर्ताओं से सम्पर्क करके पता करें कि क्या हमारी छवि हिन्दू विरोधी पार्टी के रूप में देखी जा रही है। लगता है कि राहुल का आशय केवल हिन्दू विरोधी छवि के सिलसिले में पता लगाना ही नहीं है, बल्कि पार्टी की सामान्य छवि को समझने का है। राहुल ने यह काम देर से शुरू किया है। खासतौर से पराजय के बाद किया है। इसके खतरे भी हैं। पिछले तीनेक दशक में कांग्रेस संगठन हाईकमान-मुखी हो गया है। कार्यकर्ता जानना चाहता है कि हाईकमान का सोच क्या है। पार्टी के भीतर नीचे से ऊपर की ओर विचार-विमर्श की कोई पद्धति नहीं है। यह दोष केवल कांग्रेस का दोष नहीं है। भारतीय जनता पार्टी से लेकर जनता परिवार से जुड़ी सभी पार्टियों में यह कमी दिखाई देगी। आम आदमी पार्टी ने इस दोष को रेखांकित करते हुए ही नए किस्म की राजनीति शुरू की थी, पर कमोबेश वह भी इसकी शिकार हो गई।

Sunday, December 28, 2014

हिन्दू विरोधी नहीं उलझनों भरी पार्टी है कांग्रेस

'हिंदू विरोधी’ छवि कांग्रेस के पतन का कारण ?

  • 1 घंटा पहले
राहुल गांधी, सोनिया गांधी, कांग्रेस
लोकसभा चुनावों में हार के बाद विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे कांग्रेस पार्टी के लिए निराशाजनक रहे हैं.
मीडिया में आई ख़बरों के अनुसार पार्टी अपनी 'बिगड़ती छवि' पर चिंतन करने के मूड में है. वहीं यह भी कहा गया कि एक के बाद एक हार मिलने की वजह है पार्टी की 'हिंदू विरोधी' छवि.
हालांकि कांग्रेस के बारे में ऐसे बयान नए नहीं हैं.
लेकिन पार्टी की लोकप्रियता में कमी के कारण शायद कुछ और हैं, जिन्हें समझने के लिए ज़रूरी आत्ममंथन से पार्टी शायद गुज़रना नहीं चाहती?

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राहुल गांधी, कांग्रेस
कांग्रेस क्या वास्तव में अपनी बिगड़ती छवि से परेशान है? या इस बात से कि उसकी छवि बिगाड़कर ‘हिंदू विरोधी’ बताने की कोशिश की जा रही हैं?
इससे भी बड़ा सवाल यह है कि वह अपनी बदहाली के कारणों को समझना भी चाहती है या नहीं?
छवि वाली बात कांग्रेस के आत्ममंथन से निकली है. पर क्या वह स्वस्थ आत्ममंथन करने की स्थिति में है? आंतरिक रूप से कमज़ोर संगठन का आत्ममंथन उसके संकट को बढ़ा भी सकता है.
अस्वस्थ पार्टी स्वस्थ आत्ममंथन नहीं कर सकती. कांग्रेस लम्बे अरसे से इसकी आदी नहीं है. इसे पार्टी की प्रचार मशीनरी की विफलता भी मान सकते हैं. और यह भी कि वह राजनीति की ‘सोशल इंजीनियरिंग’ में फेल हो रही है.

आरोप नया नहीं

सोनिया गांधी, कांग्रेस
यह मामला केवल ‘हिंदू विरोधी छवि’ तक सीमित नहीं है.
पचास के दशक में जब हिंदू कोड बिल पास हुए थे, तबसे कांग्रेस पर हिंदू विरोधी होने के आरोप लगते रहे हैं पर कांग्रेस की लोकप्रियता में तब कमी नहीं आई.
साठ के दशक में गोहत्या विरोधी आंदोलन भी उसे हिंदू विरोधी साबित नहीं कर सका.
वस्तुतः इसे कांग्रेस के नेतृत्व, संगठन और विचारधारा के संकट के रूप में देखा जाना चाहिए. एक मोर्चे पर विफल रहने के कारण पार्टी दूसरे मोर्चे पर घिर गई है.
कांग्रेस की रणनीति यदि सांप्रदायिकता विरोध और धर्मनिरपेक्षता की है, तो वह उसे साबित करने में विफल रही.

Saturday, December 27, 2014

मोदी के अलोकप्रिय होने का इंतज़ार करती कांग्रेस

सन 2014 कांग्रेस के लिए खौफनाक यादें छोड़ कर जा रहा है। इस साल पार्टी ने केवल लोकसभा चुनाव में ही भारी हार का सामना नहीं किया, बल्कि आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, हरियाणा, महाराष्ट्र, सिक्किम के बाद अब जम्मू-कश्मीर और झारखंड विधान सभाओं में पिटाई झेली है। यह सिलसिला पिछले साल से जारी है। पिछले साल के अंत में उसे राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीस गढ़ और दिल्ली में यह हार गले पड़ी थी। हाल के वर्षों में उसे केवल कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में सफलता मिली है। आंध्र के वोटर ने तो उसे बहुत बड़ी सज़ा दी। प्रदेश की विधान सभा में उसका एक भी सदस्य नहीं है। चुनाव के ठीक पहले तक उसकी सरकार थी। कांग्रेस ने सन 2004 में दिल्ली में सरकार बनाने की जल्दबाज़ी में तेलंगाना राज्य की स्थापना का संकल्प ले लिया था। उसका दुष्परिणाम उसके सामने है।