Sunday, June 18, 2017

राष्ट्रपति चुनाव का गणित और राजनीति

गुरुवार को राष्ट्रपति चुनाव की अधिसूचना जारी होने के साथ राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हो गईं हैं। अब अगले हफ्ते यह तय होगा कि मुकाबला किसके बीच होगा। और यह भी कि मुकाबला होगा भी या नहीं। सरकार ने विपक्ष की तरफ हाथ बढ़ाकर इस बात का संकेत जरूर किया है कि क्यों न हम मिलकर एक ही प्रत्याशी का नाम आगे बढ़ाएं। बीजेपी अध्‍यक्ष अमित शाह ने प्रत्याशी चयन के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है। समिति में वेंकैया नायडू, अरुण जेटली और राजनाथ सिंह शामिल हैं। इस समिति ने विपक्ष सहित ज्यादातर राजनीतिक दलों से बातचीत शुरू कर दी है।  

एनडीए ने सन 2002 में प्रत्याशी का निर्णय करने के लिए समिति नहीं बनाई थी, बल्कि प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने खुद कांग्रेस अध्यक्ष से मुलाकात की थी। उन्होंने एपीजे अब्दुल कलाम का नाम सामने रखकर ऐसी स्थिति पैदा कर दी, जिसे कांग्रेस नकार नहीं पाई थी। इसके विपरीत सन 2012 में कांग्रेस ने प्रणब मुखर्जी का नाम घोषित करने के बाद मुख्य विपक्षी दल भाजपा से सम्पर्क किया था। 

देश में अब तक हुए राष्ट्रपति चुनावों में 1977 में नीलम संजीव रेड्डी के चुनाव को छोड़ कभी ऐसा मौका नहीं आया जब सर्वानुमति से चुनाव हुआ हो। देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद को भी दो बार चुनाव लड़ना पड़ा था। सन 2002 में कांग्रेस ने एनडीए के प्रत्याशी का समर्थन कर दिया था, पर वाममोर्चे ने कैप्टेन लक्ष्मी सहगल को खड़ा करके सर्वानुमति नहीं होने दी।

चुनाव का पहला सवाल है कि क्या एनडीए का प्रत्याशी जीत पाएगा? संसद और विधानसभाओं का गणित काफी हद तक उसके पक्ष में है। भले ही उसे स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं है, पर विपक्ष में भी ऐसी एकता नहीं है कि वह अपने प्रत्याशी को जिताकर ले जाए। विरोधी दलों में सीपीएम और राजद जैसे कुछ दल हैं जो आक्रामक भूमिका निभाना चाहते हैं। इधर सरकार ने विरोधी दलों के साथ बातचीत की प्रक्रिया शुरू की है।

बुधवार को बीजेपी की समिति की बैठक हुई, जिसमें तय हुआ कि एनडीए के प्रत्याशी के नाम का ऐलान 23 जून को किया जाएगा। शुक्रवार को समिति ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की। कांग्रेस के अनुसार यह मुलाकात तो हुई, पर समिति ने किसी नाम की पेशकश नहीं की। समिति माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी के साथ बातचीत भी करेगी। वेंकैया नायडू ने बुधवार को बहुजन समाज पार्टी के सतीश चंद्र मिश्रा और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रफुल्ल पटेल से टेलीफोन पर बातचीत की। दोनों पार्टियों का कहना है कि वे अपना रुख तभी स्पष्ट करेंगी, जब बीजेपी की कमेटी उनसे औपचारिक तौर पर मुलाकात करेगी।

विपक्ष के तीखे तेवर

विपक्ष ने कहा है कि हम एनडीए के प्रत्याशी के नाम की घोषणा तक इंतजार करेंगे, पर आसार यही हैं कि वह टकराव मोल लेना चाहेगा, क्योंकि यह चुनाव सन 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले बनने वाले गठबंधनों की बुनियाद भी डालेगा। बुधवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में आरजेडी, जेडीयू, डीएमके, तृणमूल कांग्रेस और वामपंथी दलों के नेताओं की बैठक में विपक्षी नेताओं की राय थी कि हम ऐसे व्यक्ति को समर्थन देंगे, जिसका साफ-सुथरा धर्मनिरपेक्ष व्यक्तित्व हो और जो संविधान की अभिरक्षा कर सके। कांग्रेस ने बाद में स्पष्ट किया कि सरकारी पेशकश के बाद हमने किसी नाम पर विचार नहीं किया।

बैठक में यह फैसला भी किया गया कि किसानों की बदहाली के विरोध में और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करने के समर्थन में इस महीने के अंतिम तीन दिनों में से किसी एक दिन भारत बंद का आयोजन किया जाएगा। लगता यह भी है कि बीजेपी ने विपक्ष की तरफ जो हाथ बढ़ाया है उसका उद्देश्य अपने विमर्श को लम्बा खींचना है और विरोधी दलों को फैसला करने का ज्यादा मौका देने से वंचित करने का है।

हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एक मुलाकात के बाद ममता बनर्जी ने बयान दिया था कि बेहतर हो कि सत्तापक्ष और विपक्ष मिलकर एक ही प्रत्याशी का नाम आगे बढ़ाएं। बुधवार की बैठक में तृणमूल प्रतिनिधि ने कहा कि हमें सरकार की ओर से प्रत्याशी के नाम का इंतजार करना चाहिए। सीपीएम के सीताराम येचुरी का कहना था कि यह इंतजार अनंत काल तक नहीं हो सकता। वाममोर्चा चाहता है कि बीजेपी के प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव लड़ा जाए। 

क्यों महत्वपूर्ण है यह चुनाव?

इस बार का राष्ट्रपति चुनाव निम्नलिखित वजहों से महत्वपूर्ण होने जा रहा है:-

·        यह चुनाव 2019 के लोकसभा चुनाव का बिगुल बजाएगा। बेशक एनडीए की स्थिति आजतक अच्छी है, और उसे 2019 में जीत की उम्मीद भी है, फिर भी एक सम्भावना है कि त्रिशंकु संसद बने। उस स्थिति में राष्ट्रपति की भूमिका महत्वपूर्ण होगी।

·        यों भी राष्ट्रपति का अपना महत्व है और अगले दो साल की राजनीति में उनका महत्व बना रहेगा। पिछले तीन साल में हालांकि नरेंद्र मोदी की सरकार और राष्ट्रपति के बीच रिश्ते अच्छे बने रहे, पर राष्ट्रपति के एक-दो वक्तव्यों को मीडिया में हाइलाइट किया गया। अध्यादेश जारी करते समय राष्ट्रपति की भूमिका कई बार महत्वपूर्ण हो जाती है।

·        इस चुनाव से यह पता भी लगेगा कि विपक्ष अगले लोकसभा चुनाव के लिए जरूरी एकता कायम करने की स्थिति में है या नहीं। ममता बनर्जी और एनसीपी के शरद पवार का रुख अब भी स्पष्ट नहीं है।

·        बीजेपी भी इस चुनाव के बहाने दक्षिण भारत में प्रवेश का रास्ता बनाने की कोशिश कर रही है। उसने वाईएसआर कांग्रेस, टीएस आर और अन्नाद्रमुक के दोनों खेमों का समर्थन हासिल करने का दावा किया है।

·        प्रत्याशी के चुनाव के मामले में भी यह देखना होगा कि क्या संघ का कोई प्रतिनिधि एनडीए का प्रत्याशी बनेगा? या मोदी सरकार ऐसे प्रत्याशी को सामने लाएगी, जिसकी अंतरराष्ट्रीय जगत में पहचान हो। साथ ही वह देश के उद्योग-व्यापार जगत के अनुकूल हो।

·        क्या एनडीए ऐसे प्रत्याशी को भी सामने ला सकता है, जिसे विपक्ष भी स्वीकार कर ले? हाल में नरेन्द्र मोदी से मुलाकात के बाद ममता बनर्जी ने यह कहा भी था कि सभी पक्षों का केवल एक प्रत्याशी भी सम्भव है।

·        राष्ट्रपति पद के अलावा उप-राष्ट्रपति पद भी राजनीतिक लिहाज से महत्वपूर्ण होता है। वह राज्यसभा का पदेन सभापति होता है। मोदी सरकार के आने के बाद राज्यसभा की भूमिका काफी बढ़ गई है। सदन के संचालन के लिए ऐसे व्यक्ति की जरूरत होगी, जिसका सांविधानिक और लोकतांत्रिक-व्यवस्था से संचालन का अनुभव अच्छा हो और उसकी सभी दलों के बीच अच्छा सम्पर्क हो। 

भाजपा की बढ़ी ताकत का संकेत

करीब-करीब तय है कि जीत एनडीए प्रत्याशी की ही होगी। यों उसके पास अपने प्रत्याशी को जिताने लायक पूर्ण बहुमत नहीं है, पर बहुमत के काफी करीब है। उधर विपक्ष भी इतना एकजुट नहीं है कि वह अपने प्रत्याशी को जिता सके। एनडीए के पास सांसदों, और देशभर की विधानसभाओं के सदस्यों से बनने वाले निर्वाचक मंडल के 46.8 फीसदी वोट हैं। यानी उसे करीब 3 प्रतिशत से कुछ ज्यादा वोटों की जरूरत है। राष्ट्रपति-चुनाव का एक गणित है, जिसमें वोटों का कुल मूल्य 11 लाख के आसपास है। मोटा अनुमान है कि एनडीए के पास करीब साढ़े पाँच लाख वोटों का इंतजाम है।

बीजेपी के अनुसार वाईएसआर कांग्रेस, अन्नाद्रमुक के दोनों खेमे, टीआरएस और इनेलो का समर्थन भी उसके पास है। इतने भर से उसके प्रत्याशी की जीत हो जाएगी। बीजेपी की कोशिश है कि वह ज्यादा से ज्यादा बड़े बहुमत को अपने साथ दिखाने में कामयाब हो ताकि उनका देश पर मानसिक प्रभाव हो। इसलिए वह बीजू जनता दल को भी अपने साथ लाने का प्रयास करेगी। बीजद को फैसला करना होगा। उसने अब तक अपने आप को महागठबंधन और एनडीए से दूर रखा है। राज्य की वित्तीय जरूरतों के लिहाज से ओडिशा ने केंद्र के साथ टकराव भी मोल नहीं लिया।

विरोधी दल चाहते हैं कि बीजद को एनडीए के खेमे में जाने से रोका जाए। यों भी ओडिशा में बीजेपी मुख्य विरोधी दल के रूप में उभर रही है। इसलिए बीजद का उसके साथ जाना सम्भव नहीं लगता। विरोधी खेमे में कई नामों की चर्चा है, पर बंगाल के पूर्व राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी के नाम पर सहमति बनती नजर आ रही है। वे महात्मा गांधी के पौत्र हैं। विरोधी दल चाहते हैं कि इस मौके पर अमित शाह को उनके चतुर बनिया बयान पर रगड़ा जाए।

पाँच राज्यों के चुनाव परिणामों के कारण नरेन्द्र मोदी और भाजपा की बढ़ी हुई ताकत का संकेत राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति के चुनाव में दिखाई पड़ेगा। अगले साल राज्यसभा के चुनाव से स्थितियों में और बड़ा गुणात्मक बदलाव आएगा। लोकसभा में कांग्रेस 1977, 1989 और 1996 के बाद से कई बार अल्पमत रही है। पर राज्यसभा में उसका वर्चस्व हमेशा रहा है। यानी राज्यों में उसकी उपस्थिति थी। अब पहली बार ऐसा मौका आया है, जब राज्यों की विधानसभाओं में कांग्रेस का संख्याबल भारतीय जनता पार्टी से पीछे रह गया है, जो राज्यसभा में नजर आने लगा है।

चुनाव का गणित

राष्ट्रपति-चुनाव का एक गणित है, जिसमें वोटों का कुल मूल्य 11 लाख के आसपास है। मोटा अनुमान है कि बीजेपी के पाँच लाख के आसपास वोटों का इंतजाम हो गया है। विधानसभाओं में पहली बार भाजपा का संख्याबल कांग्रेस पर भारी है। हाल में हुए पाँच विधानसभाओं के चुनावों के ठीक पहले देशभर में कुल 4120 विधायकों में से भाजपा के 1096 विधायक थे। अब उनकी संख्या 1400 से ऊपर हो गई है। साथ ही उसके सहयोगी दलों के विधायकों की संख्या 20 से ऊपर बढ़ी है। इन चुनावों के पहले कांग्रेसी विधायकों की संख्या 819 थी जो अब 800 से नीचे चली गई है। पाँच राज्यों में कुल 690 सीटों का चुनाव हुआ। इनमें से 167 सीटें कांग्रेस के पास और 100 सीटें बीजेपी के पास थीं। इस चुनाव में 405 सीटें भाजपा को मिली और करीब 30 सीटें उसके सहयोगियों को। जबकि कांग्रेस को 140 सीटें ही मिली हैं।

राष्ट्रपति का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर एकल हस्तांतरणीय मत द्वारा होता है। इसकी एक गणना पद्धति है, जो 1974 से चल रही है और 2026 तक लागू रहेगी। एक सांसद के वोट का मूल्य 708 है। विधायकों के वोट का मूल्य अलग-अलग राज्यों की जनसंख्या पर निर्भर है। सबसे अधिक जनसंख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश के एक विधायक के वोट का मूल्य 208 तो सबसे कम सिक्किम के वोट का मूल्य मात्र सात है।

उत्तर प्रदेश में विधायकों की संख्या भी सबसे बड़ी है, इसलिए वहाँ के कुल वोट भी सबसे ज्यादा हैं। देशभर के 4120 विधायकों के कुल वोट का मूल्य है 5,49,474। सन 2012 के चुनाव में सांसदों की संख्या थी 776। इन सांसदों के वोटों का कुल मूल्य था–5,49,408। इस प्रकार राष्ट्रपति चुनाव में कुल वोट थे–10,98,882। हाल में जिन पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए वहाँ के कुल वोट थे 1,03,756। उत्तर प्रदेश से 83,824, पंजाब से 13,572, उत्तराखंड से 4,480, मणिपुर से 1,090 और गोवा से 800। चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में भाजपा के पास 3824 वोट थे और चुनाव में उसके वोटों में असाधारण रूप से 60 हजार से ज्यादा का इजाफा हुआ है। अब उसके पास 64,886 वोट हैं। इनके अलावा करीब साढ़े तीन हजार वोट उसके सहयोगी दलों के पास हैं।

पिछले तीन साल में सरकार से जनता की अपेक्षाएं कितनी पूरी हुईं, इसे लेकर तमाम किस्म की राय हैं। पर यह भी जाहिर है कि मोदी की लोकप्रियता के ग्राफ में कमी नहीं आई है। यहाँ तक कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने हाल में जनता से बेहतर संवाद करने के लिए प्रधानमंत्री की तारीफ भी की। उन्होंने कहा कि मोदी जनता से कुछ वैसा ही संवाद करते हैं जैसा जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी करते थे। सवाल यह है कि मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ कितना ऊपर जाएगा? साथ ही जनता की अपेक्षाएं कहाँ तक जाएंगी? क्या जनता उनसे कभी जवाब नहीं माँगेगी?

चुनाव कार्यक्रम

·        चुनाव आयोग ने 14 जून को अधिसूचना जारी की

·        नामांकन की अंतिम तारीख 28 जून

·        जांच के लिए तिथि: 29 जून

·        नामांकन वापस लेने की आखिरी तारीख 1 जुलाई

·        17 जुलाई को पड़ेंगे वोट

·        20 जुलाई को होगी मतगणना

·        दिल्ली में संसद भवन में वोट पड़ेंगे

·        राज्य प्रतिनिधि अपने राज्यों के विधान भवनों में और सांसद दिल्ली में करेंगे वोट

ईवीएम नहीं

इस चुनाव में ईवीएम का इस्तेमाल नहीं होगा। ऐसा ईवीएम विवाद के कारण नहीं है, बल्कि इसलिए है कि इन मशीनों में आनुपातिक मतगणना की व्यवस्था नहीं है। मतपत्रों पर प्राथमिकताओं के निशान लगाने के लिए आयोग विशेष कलम मुहैया कराएगा। केवल इसी कलम का उपयोग करना होगा अन्य कलम से मतपत्र पर निशान लगाए जाने पर वह वैध नहीं होगा। लोकसभा के सेक्रेटरी जनरल इस चुनाव के रिटर्निंग अफसर होंगे। मतदान संसद भवन और राज्यों के विधान सभा भवनों में होगा। हर उम्मीदवार के 50 प्रस्तावक और 50 समर्थक होंगे। अगर कोई मतदाता एक से ज्यादा उम्मीदवार का प्रस्ताव या समर्थन करेगा तो वह अवैध होगा। यानी एक उम्मीदवार के पीछे कम से कम 100 मतदाताओं का होना अनिवार्य है। पार्टियां ह्विप जारी नहीं करेंगी।

चुनाव का गणित

दल
विधायक
सांसद
वि.सभा वोट
संसदीय वोट
कुल वोट
प्रतिशत
कुल
4114
784
5,49,474
5,55,072
11,04,546
100
एनडीए
1691
418
2,41,757
2,95,944
5,37,683
48.64
यूपीए
1710
244
2,18,987
1,73,460
3,91,739
35.47
अन्य
510
109
71,495
72,924
1,44,302
13.06
उपरोक्त गणना सार्वजनिक मीडिया स्रोतों से प्राप्त जानकारी के आधार पर है। इसे मोटा अनुमान ही कहा जा सकता है। यह आधिकारिक डेटा नहीं है। इन संख्याओं का जोड़ लगाने के बाद भी लगभग 3 प्रतिशत वोटों की विसंगति है या उनका विवरण उपलब्ध नहीं है।


अब तक के चुनाव परिणाम

वर्ष
राष्ट्रपति
दूसरे नम्बर के प्रत्याशी
जीत का अंतर
1952
डॉ राजेन्द्र प्रसाद
केटी शाह
5,07,400
1957
डॉ राजेन्द्र प्रसाद
चौधरी हरि राम
4,59,698
1962
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन
चौधरी हरि राम
5,53.067
1967
डॉ ज़ाकिर हुसेन
कोका सुब्बाराव
4,71,244
1969
वीवी गिरि
नीलम संजीव रेड्डी
4,20,077
1975
फ़ख़रुद्दीन अली अहमद
त्रिदिब चौधरी
7,65,587
1977
नीलम संजीव रेड्डी
निर्विरोध
-------------
1982
ज्ञानी जैल सिंह
हंसराज खन्ना
7,54.113
1987
आर वेंकटरामन
वीआर कृष्ण अय्यर
7,40,148
1992
डॉ शंकर दयाल शर्मा
जीजी स्वेल
6,75,864
1997
केआर नारायण
टीएन शेषन
9,56,290
2002
एपीजे अब्दुल कलाम
कैप्टेन लक्ष्मी सहगल
8,15,366
2007
श्रीमती प्रतिभा पाटील
भैरों सिंह शेखावत
3,06,810
2012
प्रणब मुखर्जी
पीए संगमा
3,97,776







नवोदय टाइम्स में प्रकाशित

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