Sunday, April 2, 2017

प्रश्न प्रदेश में योगी का प्रवेश

आदित्यनाथ योगी की सरकार बनने के बाद से दो या तीन बातों के लिए उत्तर प्रदेश का नाम राष्ट्रीय मीडिया में उछल रहा है। एक, ‘एंटी रोमियो अभियान’, दूसरे बूचड़खानों के खिलाफ कार्रवाई और तीसरे बोर्ड की परीक्षा में नकल के खिलाफ अभियान। तीनों अभियानों को लेकर परस्पर विरोधी राय है। एक समझ है कि यह ‘मोरल पुलिसिंग’ है, जो भाजपा की पुरातनपंथी समझ को व्यक्त करती है। पर जनता का एक तबका इसे पसंद भी कर रहा है। सड़क पर निकलने वाली लड़कियों के साथ छेड़-छाड़ की शिकायतें हैं। पर क्या यह अभियान स्त्रियों को सुरक्षा देने का काम कर रहा है? मीडिया में जो वीडियो प्रसारित हो रहे हैं, उन्हें देखकर लगता है कि घर से बाहर जाने वाली लड़कियों को भी अपमानित होना पड़ रहा है। यह तो वैसा ही है जैसे वैलेंटाइन डे पर हुड़दंगी करते हैं। 

इस अभियान को लेकर मिली शिकायतों के बाद प्रशासन ने पुलिस को आगाह किया है कि चाय की दुकानों में खाली बैठे नौजवानों के साथ सख्ती बरतने और मुंडन करने या मुर्गा बनाने जैसी कार्रवाई से बचे। यह मामला हाईकोर्ट तक गया है और लखनऊ खंडपीठ ने इसे सही ठहराया है। अदालत ने कहा-प्रदेश के नागरिकों के लिए संकेत है कि वे भी अनुशासन के लिए अपने बच्चों को शिक्षित करें। उत्तर प्रदेश से प्रेरणा पाकर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने यहाँ भी ऐसा ही अभियान चलाने की घोषणा की है। ऐसे अभियान लम्बे समय तक नहीं चलते। इनका अच्छा-बुरा असर जल्द नजर आएगा। अलबत्ता भारतीय जनता पार्टी को राज्य में अपने पैर जमाने हैं, तो उसे बुनियादी सतह पर जाना होगा। यह दौर आधुनिकीकरण का है। हम ‘नए भारत’ का सपना देख रहे हैं तो किशोरों और नौजवानों को भयभीत न करें। उनके सामने रोजगार और अपने विकास के उपयुक्त अवसर होने चाहिए। ऐसा होगा तो वे निरर्थक बातों के लिए क्यों भटकेंगे? दूसरे जब लड़कियाँ घर से बाहर निकलेंगी तो लड़कों से भी उनकी दोस्ती होगी। इसमें अस्वाभाविक क्या है?

नए मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी की परीक्षा आर्थिक मोर्चे पर होगी। पार्टी ने वादा किया था कि हमारा पहला फैसला छोटे किसानों की कर्ज माफी का होगा। यह फैसला बगैर अच्छी तरह सोचे-समझे नहीं हो सकता। सरकार बने दो हफ्ते हो चुके हैं और कैबिनेट की बैठक नहीं हुई है। इसका मतलब है कि बाहर कहीं विमर्श चल रहा है।

आर्थिक गतिविधियों की लिहाज से प्रदेश के पिछले ढाई दशक निराशाजनक रहे हैं। पचास के दशक में उत्तर प्रदेश के संकेतक राष्ट्रीय औसत से ऊपर रहते थे। आज सब पलट चुके हैं। आर्थिक विकास दर, प्रति व्यक्ति आय, स्वास्थ्य, शिक्षा-साक्षरता जैसे संकेतकों की गाड़ी उलटी दिशा में जा रही है। इस उलटी गाड़ी को सीधी पटरी पर लाना योगी सरकार की बड़ी चुनौती होगी।

सन 1951 में देश की औसत प्रति व्यक्ति आय की तुलना में उत्तर प्रदेश की औसत प्रति व्यक्ति आय 97 प्रतिशत थी, जो धीरे-धीरे कम होती रही और 1971-72 में 68 फीसदी हो गई। यह स्तर 1991-92 तक रहा। उसके बाद से इसमें तेज गिरावट शुरू हो गई और 2001-02 में 50.5 फीसदी हो गई। सन 2014-15 में यह 40.5 फीसदी थी। उत्तर प्रदेश के क्रमशः बीमारू राज्य बनते जाने के कारणों को समझने की कोशिश करनी चाहिए।

प्रदेश के सामने इस वक्त तीन बड़ी चुनौतियाँ हैं। कानून-व्यवस्था, आर्थिक विकास और सामाजिक सद्भाव। चुनाव प्रचार के दौरान अमित शाह ने कहा था कि देश की डबल डिजिट ग्रोथ के लिए उत्तर प्रदेश में डबल डिजिट ग्रोथ की जरूरत है। उनका दावा था कि बीजेपी की सरकार आई तो वह पाँच साल में पिछले 15 साल के पिछड़ेपन को दूर करने की कोशिश करेगी। सवाल केवल सांस्कृतिक पहचान का नहीं, लोगों की उम्मीदें पूरी करने का है।

बीजेपी के चुनाव संकल्प में छोटे किसान के लिए कर्ज माफी और मंडी से लेकर मिट्टी की जाँच तक के कार्यक्रमों की घोषणा की गई है। किसानों पर बकाया कर्ज के बारे में नवीनतम आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। दो साल पहले यह कर्ज करीब 75,000 करोड़ रुपये का था। इसमें से 8,000 करोड़ रुपये का कर्ज राज्य सहकारी बैंकों ने दिया था, शेष कर्ज ग्रामीण बैंकों और वाणिज्यिक बैंकों ने दिया था। योगी सरकार के सामने सबसे बड़ी आर्थिक चुनौती इस कर्ज-माफी से खड़ी होगी। राज्य के सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में राजकोषीय घाटा वर्ष 2013-14 में 2.7 फीसदी रहा था जो 2014-15 में बढ़कर 3.4 फीसदी और 2015-16 में 5.85 फीसदी तक पहुंच गया।

उत्तर प्रदेश देश के सबसे धीमी विकास दर वाले राज्यों की श्रेणी में शामिल हो चुका है। देश के केवल छह राज्यों की विकास दर उत्तर प्रदेश से कम है। प्रदेश की कुल आबादी में से करीब 30 फीसदी जनता गरीबी की रेखा के नीचे है, जो 21.9 प्रतिशत के राष्ट्रीय औसत से अधिक है। निवेश के मामले में उत्तर प्रदेश का स्थान राज्यों की सूची में बीसवाँ है। देश के सकल घरेलू उत्पाद में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी सात से आठ फीसदी है जबकि आबादी 17 फीसदी है। इस कमजोर हालत में उत्तर प्रदेश किस तरह किसानों का कर्ज माफ करेगा? चूंकि वादा किया है, इसलिए किसी न किसी रूप में इसकी शुरुआत करनी होगी। यह शुरूआत कैसी होगी, इसे देखना है।

सरकार के पास किसानों की कर्ज माफी के पहले दूसरी बातों पर ध्यान देने का विकल्प भी है। हर घर में शौचालय, सभी को 24 घंटे बिजली, हर घर को गैस कनेक्शन और हर गांव तक बस चलाने की कोशिश सरकार करेगी तो सुधार दूर से दिखाई पड़ेंगे। इनसे जनता का भरोसा बढ़ेगा। एंटी रोमियो अभियान जैसे कार्यक्रम बदमज़गी पैदा करते हैं। दूसरे जिस पुलिस की मदद से सरकार यह कार्यक्रम चला रही है उसका प्रशिक्षण ठीक नहीं है। सरकार को कानून-व्यवस्था पर ध्यान देना चाहिए। इससे माहौल खुशनुमा बनेगा। भय और आतंक मददगार नहीं होंगे।

कानून व्यवस्था और प्रशासनिक सुधार से प्रदेश में निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा, आधारभूत ढांचा मजबूत होगा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी। उत्तर प्रदेश की उलटी चलती गाड़ी को सही दिशा में लाने में अभी कम से कम तीन साल लगेंगे। पर यदि पहले दो साल में आर्थिक संकेतक सुधरे तो योगी सरकार को श्रेय मिलेगा। उसे अपनी प्राथमिकताओं को तय करना चाहिए। 

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